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दूसरे चरण में मुद्दे बदले, पुराना राग, कांग्रेस ने चुनाव को लोकल मोड पर डाला, भाजपा चिंतित

RNE, STATE BUREAU  

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में राज्य की 12 सीटों पर वोट पड़ गये। उस मतदान ने दूसरे चरण की सूरत को भी पूरी तरह बदल दिया है। कम मतदान से भाजपा ज्यादा उलझन में दिखी। अब तो ये बात मानने वालों की संख्या बढ़ गई है कि इस बार पिछले दो चुनावों जैसी स्थिति नहीं रहेगी कि सभी 25 सीट भाजपा जीत जाये। विपक्ष का राज्य में खाता खुलना तो तय माना जा रहा है। बस, इसी कारण चुनाव का सिनेरियो दूसरे चरण में बदला हुआ दिख रहा है।

पहले चरण में कम मतदान से ये तो स्पष्ट हो गया कि वोटर केंद्र सरकार को फिर से लाने के लिए खुलकर नहीं आया है। हालांकि उसने सरकार से नाराजगी को भी व्यक्त नहीं किया है। इससे ये तो साफ है कि सभी सीटें जीताने के लिए मतदाता उत्साह में तो नहीं दिख रहा। उसकी बेरुखी की वजह अभी तक भी रहस्य बनी हुई है। उससे चिंता ज्यादा बढ़ी है।

पहले चरण से सबक लेकर भाजपा भी नये मुद्दे छोड़ पुराने राग में आ गई है। ध्रुवीकरण, सुलतान, शहजादा, राष्ट्रवाद, धारा 370, राम मंदिर आदि को लेकर ही दूसरे चरण में प्रचार किया जा रहा है। इस चरण के लिए राज्य में भाजपा ने खली, कंगना रनोत, योगी आदित्यनाथ आदि को आगे किया है। उससे लगता है कि चुनावी मुद्दे शिफ्ट किये गये हैं। मुद्दे शिफ्ट करने की वजह कांग्रेस की रणनीति भी है।

कांग्रेस ने चुनाव को पूरी तरह से स्थानीय बना दिया है। राष्ट्रीय मुद्धों की बजाय उसने स्थानीय मुद्दे खड़े किये हैं। जैसे वो मोदी सरकार के 10 साल पर कम सवाल करती है, उससे कई गुना ज्यादा सवाल उम्मीदवारों से कर रही है कि उन्होंने 10 साल में क्या किया। राज्य में कोई लहर तो किसी की भी नहीं दिख रही, उस हालत में ये सवाल ज्यादा मुखरित हो रहे हैं। जोधपुर, बाड़मेर, पाली आदि में यही बड़े सवाल बन रहे हैं।

दूसरे कांग्रेस ने जातीय समीकरण साधने के ज्यादा प्रयास किये हैं। जिस जगह जिस जाति के वोट अधिक है, वहां उसी जाति के नेता को प्रचार में उतारा है। कांग्रेस ने राष्ट्रीय नेताओं के बजाय राज्य के नेताओं के हाथ मे कमान दी है ताकि चुनाव व उसके मुद्दे स्थानीय बने रहे। इसी वजह से भाजपा को अपने पुराने मुद्धों पर आना पड़ा है। दूसरे चरण की 13 सीटों पर इसीलिए कोई लहर नहीं दिख रही, मुकाबला दिख रहा है। मतदाता का मौन भी इस मुकाबले को दिलचस्प बना रहा है।