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आरोप है कि एबीवीपी के दबाव में मेला रद्द किया गया, गांधी – नेहरू की किताबें ताकि न बिके
RNE Network
पुस्तकों को आदमी का सबसे अभिन्न मित्र समझा जाता है मगर अब पुस्तकों को लेकर भी राजनीति होने लगी है। साहित्य तो सदा राजनीति को दिशा देता आया है मगर अब वही साहित्य राजनीति की गिरफ्त में आने लगा है।
पुस्तकों की लोकप्रियता के लिए पुस्तक मेले लगते रहने की परंपरा है। पुस्तक संस्कृति भारत की पहचान है। हाल ही में दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले का भी बड़ा आयोजन हुआ था। इसके बाद भी पुस्तक मेलों को अब राजनीति का शिकार बनाया जा रहा है।
उत्तराखंड के श्रीनगर के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में 15 – 16 फरवरी को होने वाला पुस्तक मेला रद्द किया गया है। आयोजकों का दावा है कि इसे एबीवीपी के दबाव की वजह से रद्द किया, क्योंकि वह नहीं चाहती कि मेले में गांधी – नेहरू से जुड़ी किताबें बेची जाये।