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Munavar Rana : 71 की उम्र में पीजीआई लखनऊ में ली आखिरी सांस, कई दिनों से थे बीमार

आरएनई, बीकानेर।

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

ये और ऐसे ही सैकड़ों शेर दुनिया की जुबान पर चढ़ाने वाले भारत के मशहूर शायर मुनव्वर राना अब नहीं रहे। रविवार देर रात उन्होंने पीजीआई लखनऊ में आखिरी सांस ली। उनका अंतिम संस्कार राय बरेली में होगा। मुनव्वर राणा के बेटे तबरेज दिल्ली से लखनऊ के लिए रवाना हो गए। बेटी सौम्या राणा ने निधन की पुष्टि करते हुए कहा है कि वे लंबे समय से बीमार थे। राना के निधन की खबर से भारत ही नहीं दुनियाभर में उनके प्रशंसक काफी दुखी है। रविवार देर रात से ही राना के घर के आगे भीड़ जुटने लगी है।

71 की उम्र में आखिरी सांस, यूपी में जन्म, बंगाल में पालन, घर हिन्दुस्तान:

मुनव्वर राना का जन्म 26 नवंबर 1952 को रायबरेली के गांव में हुआ था। विभाजन के वक्त परिवार के अधिकांश लोग पाकिस्तान चले गए लेकिन उनके पिता ने भारत में ही रहने का निर्णय लिया। विभाजन की त्रासदी में जमींदारी चली गई तो कोलकाता चले गए। ऐसे में राना बचपन के बाद जवानी की दहलीज तक बंगाल में रहे। यहां वे नक्सलियों के संपर्क में आ गए तो पिता ने घर से निकल दिया। लगभग दो साल तक रिश्तेदारों-परिचितों के घर रहे। बाद में लखनऊ आ गए। यूं वे पूरे देश में घूमते रहते और अपना घर हिन्दुस्तान को कहते थे।हमको दुनिया ने बसा रखा है दिल में अपने, हम किसी हाल में बे-घर नहीं होने वालेये जो सूरज लिए कांधो पे फिरा करते हैं, मर भी जाएं तो “मुनव्वर” नहीं होने वाले

गजल को कोठे से उठाकर ‘मां’ तक लाये:

राना की खूब गजलें पसंदीदा है लेकिन मां के शेर सुनाते हुए खुद भावुक हो जाते थे। एक मुशायरे में कहा, मैं गजल को कोठे से उठाकर मां तक ले आया। ‘..मेरे हिस्से में मां आई’ जहां खूब कही-सुनी जाती है वहीं  ‘मां आज मुझको छोड़ के गांव चली गई, मैं आज अपने आइना-खाने से कट गया।’ जैसी पंक्तियां भी खूब कही-सुनी जाती है। मर्दस-डे मनाने पर राना ने कुछ यूं तंज किया था ‘ ऐसे तो उससे मोहब्बत में कमी होती है, माँ का एक दिन नहीं होता है, सदी होती है।’ वे कहते थे किसी भी मां का निधन होने पर मुझे दुख होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां के निधन पर कहा था, संभलकर चलियेगा आपके सिर पर अब मां का साया नहीं है।’

देश से मुहब्बत:

मुनव्वर राना कई बार राजनीतिक हालात में तंज के शिकार हुए तो कई बार खुद उन्होंने भी बदलती राजनीति और राजनेताओं पर तंज कसे। अपने देश से लगाव किस हद तक था, इसका उदाहरण हैं ये शेर :

ना जन्नत मैंने देखी है ना जन्नत की तवक्क़ो है
मगर मैं ख़्वाब में इस मुल्क का नक़शा बनाता हूँ।
मुझे अपनी वफ़ादारी पे कोई शक नहीं होता
मैं खून-ए-दिल मिला देता हूँ जब झंडा बनाता हूँ।।

मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता

.. और ये शेयर अब सपुर्दे खाक होने वाला है, जो मौत को लेकर कुछ यूं कहता रहा :

मौत उस की है, करे जिस का ज़माना अफ़सोस,
यूं तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए।