ये दिन हैं गठबन्धन के : गरज के सौहार्द्र में सांप-नेवले के भी गठबंधन !
ये दिन हैं गठबन्धन के : डॉ. मंगत बादल
सत्ता में प्रवेश कर जाने के बाद जिस प्रकार नेता के बहार के दिन आते हैं उसी प्रकार चुनाव के पूर्व के दिन गठबंधन के दिन होते हैं। गठबंधन अर्थात् ग्रंथि-बंधन जिसका आशय कभी विवाह जैसे पवित्र बंधन से भी था अब बदल गया है। दो या दो से अधिक राजनीतिक पार्टियाँ जब कोई चुनावी समझौता करती हैं, गठबंधन कहलाता है।
गठबंधन की यह विशेषता है कि यह उन पार्टियों के बीच में होता है जो किसी तीसरी पार्टी को धूल चटाकर खुद सत्ता का चूर्ण चाटना चाहती हैं। तीसरी पार्टी का भय जब समाप्त हो जाता है अथवा गठबंधन वाली पार्टियों में से कोई पार्टी उस तथाकथित तीसरी पार्टी से गठबंधन कर लेती है तो पुराना गठबंधन टूट जाता है और सरकार रूपी मंच किसी ठेकेदार द्वारा घटिया सामग्री से निर्मित इमारत की भाँति भरहराकर गिर जाता है। फिर नई समीकरणें बनती हैं। सरकार बनती है। कुछ मंत्री आकाश से धरती पर धम्म से आ गिरते हैं तो कुछ विधायक या सांसद आकाश में जा विराजते हैं। यही गठबंधन की महिमा है।
गठबंधन के मौसम में पार्टियों एक दूसरी पार्टी की गलतियाँ, शत्रुता या सिद्धान्त नहीं देखती बल्कि ताकत देखती हैं। सत्ता में घुसने के अवसर देखती हैं। कुछ आशा की झलक मिलती है तो तत्काल गठबंधन हो भी जाता है। जब किसी पार्टी को लगता है कि वह अकेली ही सत्ता के शिखर पर जा विराजेगी तो कभी भूलकर भी किसी अन्य पार्टी से गठबंधन नहीं करती। दूसरे शब्दों में गठबंधन सत्ता के शिखर पर विराजने की कामयाब कोशिश की ओर बढ़ने का नाम है।
चुनावों की घोषणा होते ही सत्ता प्राप्त करने की इच्छुक पार्टियों की अंधी दौड़ शुरू हो जाती है। घोषणा-पत्रों के मसविदे तैयार किए जाते हैं। एक-एक उम्मीदवार को टटोलने की कोशिशें की जाती हैं। दूसरी पार्टियों में घुसपैठ हेतु रणनीतियाँ बनती हैं। किस क्षेत्र में किस जाति का वर्चस्व है, वहाँ उनकी पार्टी का कौनसा उम्मीदवार दूसरी पार्टियों के उम्मीदवारों को धूल चटा सकता है आदि बातों पर सूक्ष्मता से विचार किया जाता है, जाति, धर्म या वर्ग विशेष को हमारा संविधान बेशक न मान्यता दे किन्तु पार्टियों अवश्य देती हैं। वे ही पार्टियों जो अन्ततोगत्वा इसी संविधान की दुहाई देंगी।
अवसरवादी नागिनों की कुर्सीकांक्षी फुसफुसाहट :
अपनी तमाम संभावनाओं को पूर्ण रूप से आँककर ही कोई पार्टी किसी दूसरी पार्टी से गठबंधन करती है। कई बार यह गठबंधन किसी विशेष क्षेत्र या प्रदेश तक भी सीमित रह जाता है। उस क्षेत्र विशेष में ही वे पार्टियों एक-दूसरे की सहयोगी होती हैं अन्य स्थानों पर प्रतिद्वन्द्वी। यह सत्ता की दो मुँही अवसरवादिनी नागिन का चरित्र है। कुर्सी से होती है, गठबंधन करने वाली पार्टियों की प्रतिबद्धता केवल परस्पर नहीं। कई बार गठबंधन करने वाली किसी पार्टी को जब यह लगने लगता है कि दूसरी पार्टी के बिना (फूट डालकर कुछ सदस्यों को अपने दल में मिलाने की साजिश करने के बाद) वह सत्ता में रह सकती है तब भी गठबंधन तोड़ दिया जाता है।
सत्तासंगत में बंधनमुक्त हो एकाकार हो जाने का आनंद :
कई बार दोनों पार्टियाँ सत्ता का उपयोग करते-करते या करने की आशा में एक दूसरी पार्टी के इतना नजदीक आ जाती है कि उनका विलय भी हो जाता है। राजनीति में इस प्रक्रिया को घर लौटना ‘हृदय परिवर्तन’ ‘आत्मा की आवाज ‘देशहित आदि कुछ भी कहा जाए लेकिन होता वह सब कुर्सी प्राप्ति के लिए है, अतः ऐसी घटनाओं को नेताओं की सदाशयता समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। यह ऐसी भेड़ चाल या छूत का रोग है कि यदि एक प्रदेश में हो गया तो दूसरों में अवश्य होगा। आज नहीं तो बरस दो बरस ठहर कर हो जाएगा। केन्द्र में हो गया तो राज्य उसे आदर्श स्वरूप ग्रहण कर लेंगे। दूसरे शब्दों में यह दल या दलों के व्यक्तियों का कुर्सी से ऐसा गठबंधन है ताकि घूम फिर कर वे ही उस पर बार-बार विराजें।
- डॉ. मंगत बादल
शास्त्री कॉलोनी, रायसिंहनगर-335051
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