कवि री अबोट दीठ ई नुंवी कविता है : डाॅ.अर्जुनदेव चारण
- साहित्य अकादेमी एवं रम्मत के तत्वावधान में राजस्थानी संगोष्ठी
RNE, Jodhpur.
जब कोई कवि अपनी चेतना शक्ति से समाज और दुनिया को एक नई दृष्टि से देखकर कविता लिखता है अर्थात बात कहने का एक सलिका होता प्रत्येक रचना भाव, भाषा, शिल्प, कथ्य, संवेदना की दृष्टि से अलग होती मगर जब कोई उसी बात को कविता में एक नई दृष्टि जिसे उससे पहले किसी ने नहीं कहा हो कहे तो नई कविता होती है । यह विचार साहित्य अकादेमी एवं रम्मत संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘ राजस्थानी री नुंवी कविता ‘ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन सत्र में ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कही। उन्होंने कहा कि – ‘ अेक अबोट दीठ ई नुंवी कविता है । ‘
रम्मत संस्थान के सचिव दीपक भटनागर ने बताया कि इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन समारोह प्रतिष्ठित कवि-आलोचक नन्द भारद्वाज ने कहा कि कविता जिस दौर में लिखी जाती है, वह उस दौर की नई कविता ही होती है। पृथ्वीराज रासो, मीरा इसके उदाहरण है। उन्होंने कहा कि कविता करने वाले को न केवल अतीत को जानने की जरूरत है अपितु भविष्य को देखते की । सूर्यमल मीसण, बांकीदास व शंकरदान सामौर ने अपनी कविता में समय का सच कहा, जो हर दौर की कविता का धर्म है।उन्होंने केसरीसिंह बारहठ, जन कवि उस्ताद व उमरदान लालस की रचनाओं का जिक्र किया और कहा कि वे व्यक्ति, समाज के हालात बताते थे। चन्द्रसिंह बिरकाली, मनुज देपावत, नारायण सिंह भाटी, कन्हैयालाल सेठिया आदि कवियों के काव्य कर्म की भी उन्होंने व्याख्या की। रेवंतदान चारण ने किसान, जीवन संघर्ष, व्यक्ति की पीड़ाओं को स्वर देते हुए नई कविता की धारा प्रवाहित की ।
गोरधन सिंह शेखावत, तेजसिंह जोधा, मणि मधुकर, गोरधन सिंह शेखावत, पारस अरोड़ा एवं अर्जुनदेव चारण ने नई कविता की जमीन को उर्वरा किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया । साहित्य अकादेमी के उप सचिव देवेन्द्र कुमार देवेश ने स्वागत उदबोधन दिया। संयोजन प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने किया।
प्रथम सत्र – संगोष्ठी के प्रथम दिन के प्रथम तकनीकी सत्र कवि श्यामसुन्दर भारती की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ । इस सत्र में डॉ.गजेसिंह राजपुरोहित ने ‘ राजस्थान री नवीं कविता ‘ सन 1970 से 1985 के विशेष सन्दर्भ में तथा उपेंद्र अणू ने ‘ वांगड़ी खेतर री नुवीं कविता ‘ विषयक अपना आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किया। संयोजन युवा रचनाकार डाॅ.रामरतन लटियाल ने किया।
द्वितीय तकनीकी सत्र प्रतिष्ठित रचनाकार मधु आचार्य की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें डाॅ.दिनेश चारण ने ‘ राजस्थानी री 1985 से 2000 री नुंवी कविता ‘ अर डाॅ. अंम्बिकादत्त कोटा ने ‘ हाड़ोती खेतर री नुंवी कविता ‘ विषयक आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किया। संयोजन युवा रचनाकार डाॅ. जितेन्द्रसिंह साठिका ने किया।
तृतीय कविता पाठ सत्र : संगोष्ठी के तृतीय सत्र राजस्थानी की नुंवी कविता पाठ के अंतर्गत प्रतिष्ठित राजस्थानी कवि नंद भारद्वाज, श्याम सुन्दर भारती, उपेंद्र अणू, मंगत बादल, मधु आचार्य, सुम बिस्सा, किरण राजपुरोहित, मोनिका गौड़ एवं धनंजया अमरावत ने राजस्थानी की नई कविताएं प्रस्तुत कर सबको मंत्रमुग्ध किया ।
ये रहे मौजूद –
संगोष्ठी में राजस्थानी, हिंदी, उर्दू, संस्कृत भाषाओं के प्रतिष्ठित विद्वान रचनाकार डाॅ.सोहनदान चारण, डाॅ. पद्यजा शर्मा, डाॅ.कौशल नाथ उपाध्याय, डाॅ.कल्पना पुरोहित, डाॅ.रामेश्वर शर्मा डाॅ.दिनेश सिंदल, जेबा रसीद, बसंती पंवार, किरण बादल, संतोष चौधरी, कैलाश दान लालस, मोहनसिंह रतनू, एम.आई माहिर, भंवरलाल सुथार, महेश माथुर, दीपक भटनागर, आशीष चारण, जनकसिंह चारण, धर्मेन्द्र सिंह, डाॅ.अमित गहलोत, डाॅ. रामरतन लटियाल, डाॅ.कप्तान बोरावड़, डाॅ.जितेन्द्रसिंह, नीतू राजपुरोहित, सुरभि खींची, रविन्द्र कुमार चौधरी, श्रवणराम भादू , प्रियांशु मूथा, अर्जुन कुमार प्रजापत के साथ शोध-छात्रों एवं विधार्थियों ने भाग लिया।