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कांग्रेस की भीतरी दौड़ में सचिन आगे, बाकी नेता भी कर रहे जी तोड़ प्रयास

आरएनई,स्टेट ब्यूरो। 

लोकसभा चुनाव राजस्थान कांग्रेस के लिए खास महत्त्व के है। उसके कई कारण है। विधानसभा चुनाव हारने से पहले ही कांग्रेस दो बड़े धड़ों में बंटी हुई थी और धड़े साफ साफ नजर आ रहे थे। दोनों ही धड़ों की तरफ से धड़ाधड़ एक दूसरे के खिलाफ बयान भी दिए जा रहे थे।

आलाकमान ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस राजनीतिक युद्ध को दखल देकर युद्ध विराम तक पहुंचाया। विधानसभा चुनाव कांग्रेस हार गई। उसके बाद बड़ा बदलाव हुआ और सचिन को कांग्रेस का महासचिव बना छत्तीसगढ़ का प्रभारी बना दिया गया। उनका कद पार्टी में बढ़ा।

लोकसभा चुनाव के समय राज्य की 25 सीटों पर उम्मीदवार तय करते समय अशोक गहलोत के साथ पायलट को भी पूरी तव्वजो मिली। साफ आईडेंटिफाई है कि किसे किसके कहने से टिकट मिला। अब 4 जून को जब चुनाव परिणाम आयेंगे तब किसका पलड़ा भारी रहा, इसका पता चल जायेगा।

लोकसभा चुनाव में राज्य के नेता जल्दी फ्री हो गये, क्योंकि यहां पहले दो चरणों मे ही सभी सीटों पर वोट पड़ गये। उसके बाद राज्य के नेताओं को अलग अलग राज्यों में भेजा गया। पायलट चूंकि स्टार प्रचारक हैं तो उनकी सर्वाधिक राज्यों में चुनावी सभाएं हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के बाद सर्वाधिक सभाएं पायलट के खाते में है। वे अब तक 100 से अधिक चुनावी सभाएं 14 राज्यों में कर चुके हैं। अंतिम चरण में अभी उनको और सभाएं करनी है।

कांग्रेस में पायलट के बाद राज्यसभा सदस्य व शायर इमरान प्रतापगढ़ी की सभाएं हुई है। बड़े नेताओं के बाद सर्वाधिक डिमांड इन दो नेताओं की ही रही है। उत्तर पूर्वी दिल्ली से कन्हैया कुमार चुनाव लड़ रहे हैं और इस प्रतिष्ठा की सीट का जिम्मा भी पायलट के पास है। अशोक गहलोत को राज्य के चुनाव से फ्री होते ही आलाकमान ने कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी का वरिष्ठ पर्यवेक्षक बना जिम्मा दे दिया। गोविंद डोटासरा, टीकाराम जुली व अन्य नेता पंजाब में ड्यूटी पर है। जहां राज्य के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी चुनाव लड़ रहे हैं। अधिकतर यहां के नेता उनके यहां चुनावी ड्यूटी में जा रहे हैं।

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद, परिणाम चाहे कुछ भी रहें, राज्य कांग्रेस में बदलाव होगा। उसका आधार चुनावी कार्य ही होगा। इस दौड़ में अब पायलट आगे हैं। इसलिए माना जा रहा है कि राज्य के निर्णयों में उनकी भी बड़ी भागीदारी रहेगी। गहलोत, डोटासरा की तो रहनी ही है। राज्य के चुनाव परिणाम कैसे आते हैं, उससे तय होगा कि डोटासरा को एक अवसर और मिलेगा या नहीं।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘