नागणेचीजी मां के चरणों में चढ़ी गुलाल स्तुति गाते भक्तों पर उछाली और वे गेवरिये बन शहर में निकल पड़े
आरएनई, बीकानेर।
‘हंस चढ़ी मां आई भवानी..’ की तान छेड़ी तो साथ टेरियों ने संगत ने दी और सामूहिक स्वर गूंजने लगे। तबले की थाप ने ऐसी मस्ती घोली कि कइयों के कदम थिरक उठे और एक के बाद एक भजन-स्तुतियां गूंजने लगी। साथ ही छाने लगी भक्ति की मस्ती। इस बीच मंदिर के पुजारी ने मातेश्वरी के चरणों में इत्र अर्पित किया।
गुलाल लगाई और यही गुलाल भजन-स्तुति गाते भक्तों पर उछाल दी। बस, जैसे सबकुछ बदल गया। स्तुतियों की जगह अब फाग के राग गाये जाने लगे। सुरों में जोश के साथ मस्ती घुल गई। इन सबके बीच रम्मत के बोल भी गूंजे और देखते ही देखते मंदिर में गुलाल उड़ने लगी। होली शुरू हो गई।यह नजारा है बीकानेर के नागणेचीजी माता मंदिर का। इस मंदिर में शनिवार शाम को शाकद्वीपीय समाज के परिवार एकत्रित हुए। मकसद था, होलाष्टक लगने से पहले भगवती से होली खेलने की अनुमति मांगना। रियासतकालीन परंपरा का निर्वहन करने जब जुटे तो भजन और उद्घोष में मातृभक्ति के सुर गूंज रहे थे।
ज्योंहि सिर पर माता को अर्पित गुलाल का टीका लगा भक्तों ने होली के रसियों का रूप ले लिया। अब भजन की जगह लोकगीतों की टेर गूंजने लगी। देखते ही देखते ही रसियों से गेवरिये बन गए और गाते, टेर लगाते गोगागेट की तरफ रवाना हो गए। मानों माता ने आदेश दिया हो, जाओ सुखपूर्वक होली खेलो।गोगागेट से निकली गेर, शुरू हो गई होली:
भाई-बंधु ट्रस्ट के महामंत्री नितिन वत्सस के मुताबिक, गोगागेट से शाकद्वीपीय समाज की गेर निकली। बागड़ियों का मोहल्ला, रामदेव मंदिर, चायपट्टी, बड़ा बाजार, बैदों का चौक, मरूनायक चौक होते हुए सेवगों में पहुंचकर संपन्न हुई। इस दौरान ‘केशा हो लाल केशा..’ ‘पापड़ली..’ जैसे पारंपरिक गीत गाते हुए बढ़ रहे गेवरियों का आधी रात को भी स्वागत करने लोग मौजूद रहे।खेलनी सप्तमी के साथ शुरू हुई बीकानेरी होली के इस दिन शाकद्वीपीय समाज की ओर से हंसावतों की तलाई, सूर्य भवन, जनेश्वर भवन, शिवशक्ति भवन, श्यामौजी वंशज प्रन्यास भवन आदि जगहों पर महाप्रसादी या गोठ का भी आयोजन हुआ।