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दौसा पायलट के लिए, सीकर डोटासरा के लिए, जालौर गहलोत के लिए प्रतिष्ठा की सीटें, सबकी इन पर नजर

RNE, BIKANER .

लोकसभा चुनाव 2024 चुनाव के प्रथम चरण में मतदान को लेकर अब ज्यादा समय नहीं रह गया। 19 अप्रैल को राजस्थान की 12 सीटों पर वोट पड़ेंगे और उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला हो जायेगा। पिछले दो आम चुनावों से भाजपा राज्य की सभी 25 सीटें जीतती आ रही है और इस बार भी मिशन 25 पर है। दूसरी तरफ इस बार हार के बाद भी विधानसभा चुनाव परिणामों से उत्साहित कांग्रेस हैट्रिक को रोकने के लिए पूरा दम लगा रही है।
राज्य कांग्रेस काफी समय से दो भागों में बंटी रही है। गहलोत व पायलट के धड़े आमने सामने रहे हैं। विधानसभा चुनाव तो हार गये। लोकसभा में आलाकमान ने दोनों को साधा, अब दोनों के बीच पहले जैसी दूरियां नहीं है। लोकसभा चुनाव में दोनों की भावनाओं को पूरी तव्वजो मिली। जो टिकट चाहे, दीये। ये भी ठीक है कि इस बार टिकट में पायलट फैक्टर हावी रहा। तभी तो कई युवा चुनावी समर में उतर सके हैं।
अशोक गहलोत ने इस बार अपने पुत्र वैभव गहलोत को जोधपुर के बजाय जालौर सिरोही से मैदान में उतारा है। पिछला चुनाव वैभव जोधपुर से हार गये थे। वैभव के जोधपुर छोडने के कारण पायलट गुट के करणसिंह उचियारड़ा को इस बार टिकट मिल गया। अब गहलोत की जालौर सीट पर प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। वैभव की पत्नी, पुत्री भी चुनाव प्रचार में उतरे है और गहलोत तो पूरी रणनीति से जुटे हैं। इस सीट की जीत हार से उनकी प्रतिष्ठा जुड़ी है।
पायलट परिवार का दौसा से आंतरिक नाता है। पहले स्व राजेश पायलट फिर सचिन पायलट यहां से सांसद बने। इस परिवार का यहां के लोगों से भावनात्मक सम्बंध भी है। इसी वजह से कांग्रेस आलाकमान ने पायलट के कहने पर यहां विधायक मुरारी लाल मीणा को उम्मीदवार बनाया है। जिनको जीताने की जिम्मेवारी खुद पायलट ने ली है। मीणा उस समय से पायलट के साथ है जबसे पायलट ने गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला था। दौसा सीट से पायलट की प्रतिष्ठा जुड़ी है और इस सीट का चुनाव परिणाम उनकी राजनीति को भी प्रभावित करेगा। इसलिए दौसा पायलट के लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी हुई है।
सीकर से कांग्रेस पहले पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा को चुनाव लड़ाना चाहती थी। जो इसी संसदीय सीट के लक्ष्मणगढ़ से विधायक है। बाद में ये सीट समझौते में माकपा को दी गई, जिस पर डोटासरा की सहमति थी। इस सीट पर एक तरफ जहां माकपा की प्रतिष्ठा दाव पर है वहीं दूसरी तरफ गोविंद डोटासरा की भी प्रतिष्ठा इस सीट से जुड़ी है। इसी कारण सीकर पर भी सबकी नजरें गड़ी हुई है। कुल मिलाकर कांग्रेस के बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा जिन सीटों से जुड़ी है वहां मुकाबला रोचक है और परिणाम कांग्रेस की भावी राजनीति को भी प्रभावित करेगा। प्रदेश की नजरें प्रतिष्ठा वाली इन सीटों पर गड़ी हुई है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘