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सोनिया को अन्य राज्यों का हाल पता था, इसीलिए अपने लिए राजस्थान चुना था

आरएनई,बीकानेर।

राज्यसभा के कल हुए चुनाव व उसके आये परिणामों के बाद वाकई में सोनिया गांधी की तारीफ करनी चाहिए कि उन्होंने राज्यसभा में जाने के लिए सबसे सेफ जोन राजस्थान को चुना। हिमाचल प्रदेश से उनको बहुत आग्रह किया गया था कि यहां से वे राज्यसभा में जायें मगर पार्टी के भीतरी हालात उनसे छिपे नहीं थे। उन्होंने कोई रिस्क नहीं ली। यहां प्रयाप्त वोट थे और वे सेफ थी। दूसरे राजस्थान ही अकेला वो प्रदेश था जो पिछली बार भीतरी कलह के बाद भी नहीं डिगा और पूरे पांच साल यहां झंझावतों के बाद भी सरकार चली। जिसका श्रेय राज्य की गौरवमयी राजनीतिक परंपरा व संस्कृति को देना चाहिए। सचिन पायलट पर खूब डोरे डाले गये मगर वे आज भी पार्टी के साथ है। दूसरी तरफ अशोक गहलोत भी चट्टान की तरह मजबूत रहे, बहुमत को बनाये रखा।


कांग्रेस को रिस्क कभी भी जनता से नहीं रही, अपने नेताओं से ही रही है। मध्यप्रदेश इसका जीता जागता उदाहरण है। बहुमत था और कमलनाथ मुख्यमंत्री थे। मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया टूटे और अपने साथ विधायक ले गये। सरकार भी पलट गई। राजस्थान में ऐसा नहीं हो सका।

इससे पहले गोवा में भी यही हुआ था। जनता ने तो सत्ता के करीब कांग्रेस को ही पहुंचाया था मगर विधायक ही खिसक गये और सरकार भाजपा की बन गई। आज तक उस राज्य में वापस पार्टी नेताओं के कारण सरकार नहीं बना सकी है। पूर्वोत्तर के राज्य भी इसका उदाहरण है। जहां जनता कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीता देती है मगर वे ही बाद में पाला बदल जाते हैं।


कर्नाटक भी इसका उदाहरण है। पिछली बार कांग्रेस व जेडीएस को जनता ने तो बहुमत दे दिया मगर टूटे विधायक। पाला बदला और सरकार कांग्रेस की जगह भाजपा की बन गई। देश के अनेक राज्यों के ऐसे उदाहरण है। जनता ने सांसद व विधायक तो कांग्रेस के जीताये मगर वे ही पाला बदल गये।


इन हालातों का एक निष्कर्ष ये तो निकलता ही है कि जनता तो कांग्रेस को जीता देती है, मतलब वो साथ रहती है। साथ तो नेता नहीं रहते। मिलिंद देवड़ा भी उसका ताजा उदाहरण है। राजस्थान थोड़ा विपरीत है। हाल ही में महेन्द्रजीत सिंह मालवीय ने पाला बदला मगर एक भी दूसरा विधायक उनके साथ नहीं गया। इन सबका मूल्यांकन करने के बाद ही सोनिया ने अपने लिए राजस्थान को चुना था।

– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘