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Media-Then and Now : मधु आचार्य, लक्ष्मण राघव, बृजेश सिंह, राजेंद्र जोशी, हरिशंकर आचार्य सहित वक्ताओं ने रखी बात

  • मीडिया के हालात पर मंथन करने बीकानेर का प्रबुद्ध वर्ग लक्ष्मी निवास में जुटा
  • राव बीकाजी संस्थान की पहल “मीडिया का बदलता स्वरूपः तब और अब” विषयक संगोष्ठी
  • बीकानेर की बरसगांठ पर पत्रकारिता के बदले हालात का चिंतन

RNE Bikaner.

“मेरी सगाई की बात चली। घरवाले मेरी होने वाली ससुराल गए। वापस आकर जो सबसे महत्वपूर्ण बात बताई वो थी “उनके घर अखबार आता है।” ये तब अखबार और मीडिया की विश्वसनीयता थी। आज कैसे हालात हैं, सब जानते हैं। पत्रकार आता है तो उनसे पूछते हैं “आप कौनसी पार्टी के पत्रकार हैं।” इतना ही नहीं पत्रकार का मतलब यह माना जाता है जो बगैर हेलमेट बाइक चलाता है और पुलिस चालान नहीं करती।

कवयित्री मनीषा आर्य सोनी की यह बात मीडिया में आए बदलाव और उसकी विश्वसनीयता की ओर इंगित करती है। कवयित्री मनीषा ने यह बात सोमवार को  “मीडिया का बदलता स्वरूपः तब और अब” विषयक संगोष्ठी में कही। राव बीकाजी संस्थान की ओर से बीकानेर के 538वें स्थापना दिवस पर लक्ष्मीनिवास पैलेस में यह गोष्ठी रखी गई थी। गोष्ठी के संयोजक-संचालक कवि राजेंद्र जोशी रहे।

 

जानिए किसने, क्या कहा :

माना मीडिया व्यवसाय लेकिन इथिक्स तो हैं : मधु आचार्य

मैं इस बात को बिलकुल स्वीकार नहीं करता कि प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया, सोशल मीडिया अलग होते हैं। ये सभी मीडिया के अलग-अलग रूप हैं। मीडिया में भी वैसी ही विसंगतियां दिखेगी जो समाज में मौजूद हैं। यह समाज का ही एक हिस्सा है। यह बात कहने में अच्छी लगती है कि मीडिया चौथा स्तंभ है। मीडिया में सारे दोष व्यवस्था और सत्ता पैदा करती है। पत्रकारिता अब मिशन नहीं व्यवसाय है। इसे स्वीकारने में गुरेज नहीं है। व्यवसाय के भी अपने इथिक, मर्यादाएं, मान्यताएं होती हैं। इन्हें अपनाकर चले तो नैतिकता के साथ अपने विचार और सोच की रक्षा करते हुए पत्रकारिता की जा सकती है।

-मधु आचार्य “आशावादी”, वरिष्ठ पत्रकार-लेखक

अरस्तू की Golden Mean Theory मानना है विकल्प : लक्ष्मण राघव

माना बदलाव हुआ है और यह जरूरी है। तकनीक तेजी से बदल रही है और अब AI का प्रभाव बढ़ रहा है। तकनीक दोधारी तलवार है कई बार उपयोग करने वालों को भी लहूलुहान कर देती है। फिर भी जो बड़ा बदलाव मैं महसूस कर रहा हूँ वो यह है कि अब हम व्यवस्था की बजाय व्यक्ति के आलोचक हो गए हैं। विश्वसनीयता का जो संकट खड़ा हुआ है उसके कई कारण हैं लेकिन नतीजा यह है कि अब मीडिया के लिए एड्वायजरी जारी हो रही है। ऐसे हालात में आज भी मुझे अरस्तू की Golden Mean Theory याद आती है। इस थ्योरी का एक महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि “अति में भी नैतिकता रहनी जरूरी है।” इसे अपना लिया जाये तो विश्वसनीयता के संकट से उबरा जा सकता है।

– लक्ष्मण राघव, वरिष्ठ पत्रकार, First India

तोप का मुक़ाबला करने वाला मीडिया अब खो रहा विश्वास : हरीशंकर आचार्य

खींचों न कमान से तीर, न तलवार निकालो
तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो..

अखबार यानी मीडिया को इतनी बड़ी ताकत माना गया है। अब सोशल मीडिया के इस दौर ने परिदृश्य बदल दिया है। तथ्यहीन, उत्तेजक, अमर्यादित, आधारहीन समाचार सामने आने लगे हैं। इन सबका हमें आदी बनाया जा रहा है। हमें चारित्रिक और मानसिक रूप को विखंडित करने के प्रयास हो रहे हैं। खबर जल्दी ब्रेक करने, इंप्रेशन हासिल करने के चक्कर में इथिक्स को पीछे छोड़ दिया है। यह दौर सुरक्षा के लिए भी चुनौती है। मीडिया के लिए एडवयाजरी जारी करनी पड़ी है। हमें समझना होगा कि यह बदलाव देश और समाज के प्रतिकूल न हों।

-हरिशंकर आचार्य, कवि-लेखक, जनसम्पर्क सेवा के अधिकारी

मीडिया ट्रायल करने से बचें : बिठल बिस्सा

कई बार मीडिया ट्रायल की वजह से निर्दोष लोग दोषी बन जाते हैं और दोषी मासूम नजर आते हैं। बीते दिनों महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार से जुड़े कोर्ट के एक फैसले पर मीडिया के ऐसे ही ट्रायल के नतीजे सबने देखे हैं। मीडिया एक ग्लैमर बन चुका है। नई पीढ़ी के लोग गले में पत्रकार का तमगा लगाकर जैसा बर्ताव करते हैं वह भी छिपा नहीं है। ऐसे में मेरा मानना है कि कुछ बेसिक मानदंड तय होने चहिए कि कौन पत्रकार हो सकता है। आर्थिक पक्ष भी महत्वपूर्ण विषय बन गया है। इन सबके बावजूद हमें आज के दौर में मीडिया की सकारात्मक और सुदृढ़ पक्ष की बहुत जरूरत है।

-बिठल बिस्सा, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के अतिरिक्त कुलसचिव

 

यह एक सकारात्मक संवाद : जोशी

मिशनरी पत्रकारिता के दौर से आज तक पत्रकारिता ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। इनसे पत्रकारिता में और अधिक निखार आया है। यह संगोष्ठी इन्हीं बदलावों पर विवेचन करने के लिए बुलाई गई थी। इसमें पचास से अधिक वक्ताओं ने भागीदारी निभाई और पत्रकारिता के बदलते स्वरूप पर चर्चा की। समाज के सभी प्रबुद्ध वर्ग के प्रतिनिधि शामिल और कई महत्वपूर्ण विचार निकालकर सामने आए।

-राजेंद्र जोशी, कवि-लेखक एवं संगोष्ठी संयोजक

बदलाव समाज में ही ढूँढना होगा : रंगा

कानून की भाषा में बात करू तो अखबार-मीडिया उद्योग है। ऐसे में उद्योग में काम करने वाले कर्मकार है। कर्मकार को अपने संस्थान की बात मानना काम का हिस्सा है। क्या समाज में बदलाव नहीं आया है। मीडिया हाउस सर्वे करते हैं। इसमें जो लोग जैसा देखना-पढ़ना चाहते हैं वैसी सामग्री परोसी जाती है। ऐसे में पत्रकारिता में आए बदलाव के साथ हमें यह भी सोचना चाहिए कि समाज में कैसा बदलाव आया है।

कमल रंगा, वरिष्ठ साहित्यकार

मीडिया तब और अब शीर्षक ही दर्शाता है कि कहीं न कहीं विश्वसनीयता का प्रश्न खड़ा हुआ है। बुरा न मानें लेकिन मैं कहूँगा कि एक दौर था जब प्रिंट मीडिया का ही बोलबाला था। वहां यह दबाव होता है कि एक बार जो छप गया उसे मिटा नहीं सकते। इसलिए दायित्व बढ़ जाता था इसके साथ विश्वसनीयता बढ़ती है। आजकल कटाक्ष होता है कि पत्रकार से पूछा जाता है कि “कौनसी पार्टी के हैं।” पक्ष-विपक्ष दोनों अपनी बात को सच बताते हैं। ऐसे में सच क्या है, यह जानने के लिए मन के आवाज ही सुननी होगी। सच्चा पत्रकार वह है जो पीछे रहकर प्रत्येक स्थिति को समझे और पक्ष-विपक्षीय पहलुओं से रूबरू होते हुए निष्पक्ष रिपोर्टिंग करें।

-बृजेश सिंह, राजस्थान पत्रिका बीकानेर के सम्पादकीय प्रभारी

ये महत्वपूर्ण वक्ता :

गृह विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ. विमला डुकवाल ने कहा कि देश को आजादी दिलाने में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण थी। समय के साथ मीडिया की भूमिका में बदलाव भले ही आया हो, मगर यह बदलाव सकारात्मक है।

उद्यमी डॉ. नरेश गोयल ने कहा कि आजादी के संग्राम के दौर मे अनेक महापुरूषों ने पत्रकारिता को अपनाया और आजादी की अलख जगाई। साहित्यकार संजय पुरोहित ने कहा कि पत्रकार जनहित के छोटे-छोटे मुद्दों को उठाएं। वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि बदलाव को स्वीकार करना समय की आवश्यकता है।

कैसी गोष्ठी, कौन वक्ता :

दरअसल यह संगोष्ठी राव बीकाजी संस्थान की अनूठी पहल थी जिसको राउंड टेबल डिस्कशन का स्वरूप दिया गया था। इसमें मीडिया क्षेत्र से जुड़े लोगों के साथ ही समाज के सभी प्रबुद्ध वर्गों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। इसकी परिकल्पना का जिक्र करते हुए राव बीकाजी संस्थान के संजय पुरोहित ने बताया कि संस्थान के अभिषेक आचार्य की ओर से सुझाए गए इस विषय पर सर्वसम्मति से गोष्ठी करना तय हुआ। उसी वक्त इसका संयोजक-प्रभारी होने का दायित्व राजेंद्र जोशी को देने का निर्णय हुआ। प्रारंभ में राव बीकाजी संस्थान के सचिव नरेन्द्र सिंह स्याणी ने स्वागत उद्बोधन दिया। मनीषा आर्य सोनी ने कश्मीर दुखांतिका पर केन्द्रित गीत की प्रस्तुति दी।

इस दौरान राजाराम स्वर्णकार, डॉ. रितेश व्यास, यशपाल आचार्य, जुगल किशोर पुरोहित, मोइनुद्दीन कोहरी, आत्माराम भाटी ,अशफाक कादरी , डाॅ.पूजा मोहता, डाॅ.रामलाल परिहार, योगेन्द्र पुरोहित, इसरार हसन कादरी, दयानंद शर्मा, राहुल जादूसंगत, मधुसूदन सोनी, मोइनुद्दीन कोहरी, अजीज भुट्टा, अभिषेक आचार्य, जितेंद्र व्यास सहित अनेक लोगों ने विचार व्यक्त किए। डॉ. फारूक चौहान और रामलाल सोलंकी ने आभार जताया।