बीकानेर की बेटी सोनाली की किताब को देश की सबसे बड़ी अकादमी का युवा पुरस्कार
Jun 15, 2024, 19:39 IST

सच कहूं तो साहित्य का नियमित पाठक नहीं हूं फिर भी इन दिनों जितना भी पढ़ पाया उनमें सबसे ज्यादा जिन्होंने प्रभावित किया उनमें एक सोनाली की ‘सुध सोधूं जग आंगणै’ है। दावा है, आप राजस्थानी की ये कविताएं पढ़ लें और उसके बाद आपको पता चले कि इस युवा कवयित्री की ये पहली कविताएं या पहली पुस्तक हैं तो शायद आपको यकीन नहीं हो।


मसलन :
रातां छळ करणिया दिनुगै मुखौटां रै लारै लुकणिया धोळपोसियां रै इण स्हैर मांय ठा नीं कित्ता बैरूपिया बसता हुवैला...
यहीं नहीं ठहर जाती। ललकारती है दुनियादारी के बदलते मौसम में बदलाव की बातें करने वालों की विवशता को। देखिये एक बानगी :गैला हा कांई बै मिनख जिका बदळण नै निकळया इण बैरूपियै जंगळ नै! कांई बै इत्ता भोळा हा, कै बां नै कदै ठा ई नीं पड्यो कै अठै सिंघां रै खोळियै मांय रेवै है गादड़ा कागला अठै नाचै है मोरियां बण’र लूंकड्यां करै है बंतळ गिलार्यां बण’र.. कैय दो आ संसार बदळण रो काळजो राखणिया नै, कै इण जंगळ नै बदळण सरू जको ई आयो है घर सूं निकळण तक ईज बो बण्यो रैय सकै है मिनख...



"भूख रैय जावै सिरजण री तद कवा बणै कीं थोड़ा-सा पाना अर अेक नान्ही-सी कलम। मिरतु सूं पैला रै सगळै रासै नै संभाळणो आ अेक मायावी हूंस इण काया नै, अठै ईज इणी आंगणै मांय अणंतकाळ तांई भटकावती राखैला।"

कौनसे जग का आंगणा, मन के भीतर का :
जाहिर है, यह बात वही कवयित्री कह सकती है जो ‘सुध सोधूं जग आंगणै’ के जरिये दुनिया के आंगन में सुध सोध रही है। यहां सुध सोधना या खोजना को समझने के लिए इन कविताओं से गुजरना बहुत जरूरी होगा। यह जानना होगा कि सुध कहीं खो गई या जो सुध है वह दुनियादारी में काम की नहीं। या कि सुध मिली ही नहीं थी। इसे खुद ही अपने जीवनानुभवों से खोजना है। एक मुहावरा ‘सुध-बुध खो देना’ होता है। ऐसे में क्या संवेदनाओं के गहरे सागर में खुद को खो देने के बाद ही ढूंढ़ने के किसी पायदान पर पहुंच सकते हैं ?अनुभूतियां उम्र की मोहताज नहीं :"थूं बारै जगतो दिवलो है, कै बीं रै मांय जगती बाट कुण है थूं? सबदां मांय संसार है, कै संसार मांय जोवै है सबद कुण है थूं? काच में निरखण आळी है, कै काच दिखावण आळी कुण है थूं? पाणी सरखी जातरू है, कै परबत जियां ठैरोड़ी कुण है थूं? जिनगाणी नै जोवै है, कै जिनगाणी जोवै है थनै कुण है थूं ?"


उण पूछ्यौ - थनैं इसी बातां कठै सूं उकळै? म्हैं कैयो- मत्तैई आवै जद च्यांरूमेर बंद किवाड़ लाधै जद आधी रात जूण तांडव नचावती दीसै कदैई रातां री ई गळियां ई घुचमुचिया सागै निकळो! उण पूछ्यौ- आधी रात रा, किसा मारग जोवै? काईं करै है रे तूं? म्हैं कैयो- सुध सोधूं.. उण पूछ्यौ- किण ठौड़ म्हैं कैयो- जग आंगणै...


