‘जैसलमेर का गुण्डाराज’ और ‘रघुनाथ सिंह का मुकदमा’ लिखने वाला सेनानी जिसे जिंदा जला दिया
आरएनई, स्पेशल डेस्क।
“मैं चाहता हूं कि मेरी मृत्यु इस जैसलमेर राज के अन्याय को समाप्त करने के बाद ही हो” ये उदघोष अमर शहीद सागर मल ( गोपा) पुष्करणा का है।
सागरमल गोपा का जन्म जैसलमेर के अखेराज जी पुरोहित के घर कार्तिक शुक्ल ११सम्वत१९५७ को हुआ था । आपके पिता अखेराज जैसलमेर राज के अच्छे कार्यकर्ता थे।
सागर जी के पिताजी , दादाजी, और पडदादा जैसलमेर राज के प्रति निष्ठावान थे, उनके परिवार की स्वामी भक्ति के अनुरूप ही सागर जी को भी जैसलमेर में राज में सम्मान जनक नौकरी मिल गई।
वे राज भक्त परिवार में जरूर जन्में थे , लेकिन प्रजा की सोचनीय दशा से बहुत ही दुखी थे। सागर जी ने बाल्यकाल से ही अपनी मातृभूमि जैसलमेर को आजाद कराने का बीडा उठा रखा था । सागर जी को अपने राज जैसाणे(जैसलमेर)से असीम प्रेम था। उन्होंने प्यारा राजस्थान नामक कविता भी संकलित कि जो निम्न प्रकार से –
कैसे भूल गये हो मित्रो
मातृभूमि का मान ।
अर्पित कर तन मन धन
चमका दो राजस्थान ।।
सागर मल जैसलमेर की उन्नति के लिए के लिए तत्कालीन महारावल से सदैव मांग किया करतें थे। उन्होंने रघुनाथ सिंह मेहता कि अध्यक्षता मे सन1932मे जैसलमेर मे युवा मण्डल कि स्थापना की ओर जैसलमेर के युवा को राज्य स्वतंत्रता के लिए जगाया। इसी साल रघुनाथ जी को जेल मे डाल दिया गया और युवा मण्डल को प्रतिबंधित कर दिया।
पारिवारिक कारणों से सागर मल जी गोपा नागपुर(महाराष्ट्र) चले गए और वहीं रहने लगे। नागपुर रहते हुए जैसलमेर के गुण्डाराज नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में जैसलमेर महरावल जवाहर सिंह का खुलकर विरोध किया गया। इसका प्रकाशन नागपुर और जैसलमेर में किया गया था। इसका पता चलने पर जवाहर सिंह और उसके कारिंदो ने गोपा जी को सबक सिखाने के लिए उतारूँ हो गए । गोपा जी ने रघुनाथ सिंह का मुकदमा नामक पुस्तक भी लिखी थी । जिसमें सामन्तवाद का विरोध किया गया था । इस किताब प्रतिबंधित कर दिया। सागर मल जी गोपा को जनता जननायक मानती थी और उन्हें जैसलमेर का निर्माता कहते थे। गोपा जी को बिना वारन्ट के गिरफ्तार कर करके जेल में डाल दिया गया। जेल मे गोपा जी को लगातार यातनाएं देते थे जेल मे उनके हाथो मे पैरों मे बेडीयां डाल दी ।
दिनांक 03-04-1946 के दिन एक पुलिस अफसर गुमानसिंह ने धमकाते हुए गोपा जी के शरीर पर तेल छिडक कर उन्हें आग से जला दिया गया। दिन के तीन बजे नगर में खबर फैली कि गोपा जी को आग में जला दिया है। किसी भी व्यक्ति को गोपा जी के परिवार से मिलने नहीं दिया गया। गोपा जी दिनभर तडपते रहे। शाम को अंधेरा होने पर गोपा जी को एक खाट पर रख कर कैदियों के कन्धों पर अस्पताल ले गए , तब तक भी गोपा जी के हथकड़ी और बैडियां लगा रखी थी ।
गोपा जी रातभर तडपते चिल्लाते रहे लेकिन उनका इलाज नहीं हुआ।
जनता की आजादी का शखंनाद करनेवाला दिनाक 4 अप्रैल1946 को इस ससार को छोडकर चला गया।
सागर मल जी की स्मृति में जैसलमेर में गड़ीसर गेट के बाहर प्रतिमा सरकार द्वारा लगाइ गई हैं। भारत सरकार द्वारा डाक टिकट भी जारी किया गया है। इंदिरा गांधी नहर कि एक शाखा का नाम भी सागर मल जी के नाम पर किया गया है। जिला मुख्यालय पर सीनियर हायर सेकंडरी स्कूल का नाम भी उनके नाम पर किया गया है। सागर मल देश व समाज के गौरव है।
(प्रस्तुति-संकलन : लक्ष्मीलाल पुष्करणा,राष्ट्रीय संयोजक(इतिहास प्रकोष्ठ) अखिल भारतीय पुष्टिकर सेवा परिषद।
संदर्भ-स्रोत : राजस्थान सरकार की कक्षा 10 की हिंदी की पाठ्य पुस्तक।,विशेष : बीकानेर के ख्यातनाम साहित्यकार स्व.लक्ष्मीनारायण रंगा ने गोपा के जीवन पर केन्द्रित नाटक लिखा जो खूब चर्चित हुआ।)