Skip to main content

सट्टा बाजार के आंकलन पर कितना करें भरोसा, मतदान के बाद के भाव शंका तो पैदा करते हैं

चुनाव आते ही राजनीतिक दलों, नेताओं के बाद जो सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं, वे है मीडिया और सट्टा बाजार। मीडिया के तो अब कई रूप हो गये है। प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सबसे पॉवरफुल सोशल मीडिया। चुनाव की आधी से अधिक लड़ाई तो आजकल सोशल मीडिया पर ही लड़ी जाती है। ये बड़ा घातक व सावधान रहने वाला मीडिया है। फेक वीडियो, फेक खबरे, तोड़ मरोड़कर नेताओं के भाषण इस प्लेटफॉर्म पर थोक के भाव चलाये जाते हैं। तभी तो फेक वीडियो के मामले चुनाव आयोग व न्यायालय तक बड़ी संख्या में इस बार पहुंचे हैं।

मीडिया के सभी रूपों का जमकर उपयोग अपरोक्ष रूप से चुनाव प्रचार के लिए ही होता है। पिछले कुछ चुनावों में प्रचार के एक और तरीके ने अब अपना मजबूत स्थान चुनावी प्रक्रिया में बना लिया है। ये तरीका है, सट्टा बाजार के भाव। वोट न पड़े तब तक सट्टा बाजार के कम भाव दिखा उम्मीदवार मतदाता के मन में ये बिठाने का प्रयास करता है कि उसकी जीत निश्चित है और जनता उसके ही साथ है। वोट न पड़े तब तक सट्टा बाजार प्रचार का जरिया भी बनता है।

वोट पड़ने से पहले व वोट पड़ने के बाद सट्टा बाजार के भावों में साफ अंतर दिखता है। उससे लगता है वोट पड़ने से पहले तो प्रचार में सहयोग था, मगर वोट पड़ने के बाद व्यापार हो गया है। सब जानते हैं कि भारत में चुनावी सट्टे पर अरबों के दाव लगते हैं। हर शहर में न केवल वहां की सीट अपितु राज्य और देश की सीटों के हार जीत का भी सट्टा होता है।

हर चुनाव में देश से लेकर विदेश तक जिस सट्टा बाजार की सबसे अधिक चर्चा होती है, वो है फलौदी का सट्टा बाजार। इस बाजार के भाव अखबारों में भी आते हैं और उसके आधार पर सीटों की हार जीत का पूर्वानुमान लगाया जाता है। छोटे से लेकर बड़े चेनल तक फलौदी के सट्टा बाजार के भावों पर चर्चा करते हैं। बहस करते हैं और अपने निष्कर्ष भी निकालते हैं। जो व्यापार है उस पर इतना भरोसा, सच में चकित तो करता है।

चकित होने की वजह भी है। क्यूंकि हार जीत पर पैसों का लेनदेन होता है। जो केवल भावुकता की नहीं सुनता, तथ्य हो तभी पैसे दाव पर लगाये जाते हैं। वोटिंग के बाद के फलौदी सट्टा बाजार के भाव इस बार खास चर्चा में है। राज्य में भाजपा मिशन 25 पूरा होने का दावा कर रही है तो कांग्रेस भाजपा से ज्यादा सीटें आने का दम भर रही है। राजनीतिक दलों के इस तरह के दावे अपनी जगह सही है, ये उनका धर्म भी है। मगर जब फलौदी सट्टा बाजार के भाव की ताकड़ी में इन दावों को तौलते हैं तो सब गड़बड़ हो जाता है।

राज्य की बात करें तो फलौदी सट्टा बाजार दोनों ही दलों के दावों को फेल करता है। वो न तो कांग्रेस की सीटें भाजपा से अधिक मान रहा है और न भाजपा को सभी सीटें दे रहा है। अब जिस बात से धन जुड़ा हो, उस पर लोग तो भरोसा करेंगे ही। फलौदी सट्टा बाजार ने इस बार नेताओं, दलों, विश्लेषकों को हिला के रख दिया है। अब ये 4 जून को पता चलेगा कि दावे सही थे या सट्टा बाजार।