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मानखै जूंण सारु प्रीत जरूरी : प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण

आरएनई,जोधपुर।

लेखन में प्रेम को परिभाषित करना सबसे कठिन है क्योंकि ये सृष्टि प्रेम का बीज अंकुरित होने पर ही सामने आती है । जिस तरह सृष्टि के लिए प्रकाश जरूरी है ठीक उसी तरह ” मानखै जूंण सारू प्रीत जरूरी है ” । यह विचार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डॉ.) अर्जुनदेव चारण ने जेएनवीयू के राजस्थानी शोध परिषद द्वारा आयोजित साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत ‘ डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित अभिनंदन समारोह ‘ में अपने अध्यक्षीय उदबोधन में रविवार को होटल चन्द्रा इम्पीरियल
में व्यक्त किये ।

राजस्थानी शोध परिषद के सचिव डाॅ.कप्तान बोरावड़ ने बताया कि इस अवसर पर साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत एवं काव्यकृति पळकती प्रीत के रचनाकार कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा कि यह पुरस्कार मेरे लिए गौरव का विषय होने के साथ ही बहुत बड़ी जिम्मेदारी का एहसास है, जिसे जीवनभर निभाना है । उन्होनें कहा कि राजस्थानी भाषा-साहित्य के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु सदैव प्रतिबद्ध रहूंगा । इस दौरान उपस्थित अतिथियों, रचनाकारों, शिक्षकों, साहित्य प्रेमियों एवं शोधार्थियों ने डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित को साफा पहना- माल्यार्पण कर, शाल ओढाकर, स्मृति चिन्ह भेंट कर भव्य अभिनंदन किया ।

मुख्य अतिथि राजस्थानी के प्रतिष्ठित विद्वान रचनाकार डाॅ.आईदानसिंह भाटी ने कहा कि लेखक को सदैव निर्भय होकर सृजन करना चाहिए । एक रचनाकार को समय एवं समाज को नजरअंदाज न करते हुए यथार्थ एवं सत्य से रूबरू करवाना चाहिए। विशिष्ट अतिथि डाॅ.महेन्द्रसिंह तंवर ने डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित के साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डालते हुए उन्हें असाधारण कवि-आलोचक बताया। काव्यकृति पळकती प्रीत पर आलोचनात्मक पत्र-वाचन करते हुए प्रतिष्ठित विद्वान डाॅ.प्रकाशदान चारण ने कहा कि – यह काव्यकृति शब्दों की साख एवं अर्थ का उजास है । इस काव्यकृति को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना राजस्थानी साहित्य जगत के लिए निश्चय ही गर्व की बात है ।

इस दौरान राजस्थानी विभाग की सहायक आचार्या डॉ.धनंजया अमरावत, डॉ.मीनाक्षी बोराणा एवं राजस्थानी रचनाकार डाॅ.इन्द्रदान चारण ने डॉ.गजेसिंह राजपुरोहित के साथ अपने संस्मरण साझा करते हुए उनके साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया। तत्पश्चात डाॅ.कप्तान बोरावड़ ने स्वागत उदबोधन दिया।

अभिनंदन समारोह में ख्यातनाम विद्वान डॉ.कौशलनाथ उपाध्याय, डॉ.कालूराम परिहार, भंवरलाल सुथार, मोहनसिंह रतनू, दिनेश सिंदल, गौतम अरोड़ा, डॉ. भवानीसिंह पातावत, जेबा रशीद, चांदकौर जोशी, बसंती पंवार, मंजू जांगिड़, परमेश्वर सिंह पीलवा, डॉ.सुखदेव राव, वाजिद हसन काजी, महेंद्रसिंह छायण, मधुर परिहार, संतोष चौधरी, रेणू वर्मा, पूजा राजपुरोहित, तरनीजा मोहन राठौड़, डॉ.अशोक गहलोत, शंकरदान, रामकिशोर फिड़ौदा, शक्तिसिंह खाखड़की, खेमकरण बारहठ, बी.आर.जाखड़, एल.डी.निम्बावत, लवीश आनंद, नीतू राजपुरोहित, निकिता, माधव राठौड़, श्रवणदान चारण, चनणसिंह इंदा, कैलाशदान लालस आदि साहित्यकारों व गणमान्य नागरिकों के साथ राजस्थानी विभाग के शोधार्थी डॉ.जीवराजसिंह जुढिया, मदनसिंह राठौड़, डॉ.इंद्रदान चारण, डॉ.कप्तान बोरावड़, सवाई सिंह महिया, डॉ.अमित गहलोत, डॉ.जितेंद्रसिंह साठीका, डॉ.लक्ष्मी भाटी, डॉ.भानुमती चूंडावत, कालू खां आदि शोधार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में डॉ.गौतम अरोड़ा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन डॉ.रामरतन लटियाल ने किया।