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मंत्री अर्जुनराम ने आचार्य की बात आडवाणीजी को बताई, आडवाणीजी ने कहा- ओमजी सही कह रहे, रिकॉर्ड में दर्ज करवाओ

  • अटलजी गांधीवाद को पंचनिष्ठा में शामिल करना चाहते थे, ओमजी उनके साथ थे, पूरी पार्टी सहमत हो जाती तो भाजपा चार महीने पहल बन जाती

RNE, BIKANER.

सरकार गिरने और दोहरी सदस्यता के मु्द्दे पर जनता पार्टी टूटने के बाद जनसंघ के पुराने लोग जब नये संगठन के रूप में भाजपा बनाने जा रहे थे उसके लिए दिसंबर 1979 में दिल्ली में मीटिंग बुलाई गई। देशभर के प्रमुख नेता पहुंचे जिनमें बीकानेर से ओम आचार्य थे। लगभग तय था पार्टी का गठन कर घोषणा कर दी जाएगी।

बस, एक मु्द्दे पर सहमति नहीं बन पाई। वह मुद्दा यह था, अटलबिहारी वाजपेयी चाहते थे कि भाजपा की पंचनिष्ठाओं में ‘गांधीवाद’ को शामिल किया जाए। कुछ लोग इससे सहमत नहीं थे और मीटिंग बगैर निर्णय खत्म हो गई। बाद में छह अप्रैल 1980 को मुंबई में हुए अधिवेशन में भाजपा के गठन की घोषणा हुई।

 

भाजपा के गठन को लेकर यह राष्ट्रीय स्तर का रहस्योद्घाटन रविवार को बीकानेर के सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने किया। अर्जुनराम मेघवाल यहां भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पार्टी के संस्थापक सदस्य ओम आचार्य के निधन पर चेतना संस्था एवं प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र की ओर से हुई श्रद्धांजलि सभा को संबोधित कर रहे थे।

मेघवाल ने इस श्रद्धांजलि सभा में एडवोकेट ओम आचार्य के साथ अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा, मुझे ओमजी ने जब यह बात बताई तो मैंने उनसे पूछा भी था कि उस मीटिंग में आप किस विचार से सहमत थे। तब ओमजी ने कहा, मैं अटलजी के विचार से सहमत था। दिल्ली में जाकर लालकृष्ण आडवाणीजी के सामने इस बात का जिक्र किया तो आडवाणीजी ने चौंककर पूछा ‘आपको यह बात किसने बताई।’ इस पर ओमजी का नाम लिया और आडवाणीजी ने कहा, यह बात बिलकुल सही है। मुझे निर्देश दिया कि आप डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी शोध संस्थान जाओ और इस बात को रिकॉर्ड में दर्ज करवाओ।

मंत्री मेघवाल की इस बात से पुष्टि होती है कि ओम आचार्य महज बीकानेर तक सिमटे नेता नहीं थे वरन पार्टी के गठन से ही राष्ट्रीय फलक पर उनकी खास पहचान और सक्रियता रही है। मेघवाल ने कहा ओमजी मुझे जिस तरह से प्रोत्साहित और मार्गदर्शित करते थे, वह मेरे लिए एक इन्सेंटिव की तरह था। महिला आरक्षण विधेयक पर सदन में बहस के दौरान दिये गए जवाब में मेरी तरफ से शंकराचार्य और मंडन मिश्र शास्त्रार्थ में उभय भारती के निर्णय पर जो कथा सुनाई गई उस पर ओमजी ने फोन कर बधाई दी। समय-समय पर कई मसलों पर उनसे सलाह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहा।