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रवींद्र सिंह, निर्मल चौधरी जैसे छात्र नेताओं का राजनीति में प्रवेश शुभ, एक सिलसिला ये चले

आरएनई,बीकानेर।

राजस्थान की राजनीति में पहले वे नेता अधिक प्रवेश करते थे जो छात्र संघ के चुनावों से अपनी शुरुआत करते थे। राजनीति का ककहरा ये लोग कॉलेज या विश्वविद्यालय के चुनावों से सीख जाते थे। प्रदेश के कई बड़े नेता हैं जो छात्र राजनीति से शुरू होकर प्रदेश में अपनी जगह बनाने में सफल रहे। मानिक चंद सुराना, प्रो कैदार शर्मा, अशोक गहलोत, राजेन्द्र राठौड़, हनुमान बेनीवाल आदि कुछ उदाहरण है। इन सहित अनेक नेता छात्र राजनीति से चमके।

मगर बाद में कॉलेज व विवि में छात्र संघ के चुनाव ही बंद कर दिए गए। कभी चुनाव तो कभी नहीं की स्थिति चली। जिससे छात्र नेताओं के राजनीति में आने का सिलसिला भी एकबारगी थम गया। इससे राजस्थान की राजनीति को बड़ा नुकसान हुआ। क्योंकि कि राजनीतिक समझ के साथ युवाओं के राजनीति में आने के द्वार बंद हो गये। अधिकतर वही युवा राजनीति में आने लगे जिनके पास विरासत से मिली राजनीति थी। मतलब जिनके दादा, पिता, भाई में से कोई पहले से विधायक या सांसद हो। दूसरे युवाओं के आने की संख्या न्यून के बराबर हो गई।

उसी का परिणाम है कि कई राजनेता 7 से 11 बार तक चुनाव लड़ते रहे। राजनीति में परिवारवाद तो हर पार्टी की समस्या बन गया। परिवार का ही कोई न कोई सदस्य एक के बाद एक राजनीति में आता गया। जनता की भी मजबूरी थी। मगर पिछले दिनों इस रवायत को तोड़ा जोधपुर विवि छात्र संघ के अध्यक्ष रवींद्र सिंह भाटी ने। छात्र राजनीति से वे राजनीति में उतरे तो उनको उस पार्टी ने टिकट नहीं दिया जिसमें वो शामिल हुए थे। उनके सामने कांग्रेस के उम्मीदवार अपना 10 वां चुनाव लड़ रहे थे। रवींद्र ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और राजनीति को नई ऊर्जा दे दी। उनका चुनाव प्रचार, भाषण, जन जुड़ाव, जनसंपर्क, मातृ भाषा का उपयोग इतना प्रभावी रहा कि शिव की जनता ने अपने इस छात्र नेता को विधायक बना दिया। वो भी दिग्गजों को हरा कर। राजनीति में एक नई करवट आई।

ठीक इसी तरह राजस्थान विवि छात्र संघ का चुनाव संघर्ष के बाद निर्मल चौधरी जीते। उस चुनाव से उन्होंने राजनीति ककहरा सीख लिया। राजनीति के दावपेच उन पर आजमाये गये तो वे उनको भी जान गये। अब वे भी सक्रिय राजनीति में उतरे है एक राजनीतिक दल के साथ। ये भी नई करवट है। नये चेहरों और खासकर छात्र राजनीति के चेहरों के आने से राजनीति की सीरत और सूरत कुछ तो बदलने की उम्मीद जगी है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘