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साहित्योत्सव का तीसरा दिन, सिनेमा और साहित्य के संबंधों के साथ ही अनेक विषयों पर हुई चर्चा

RNE Network

साहित्योत्सव 2025 के तीसरे दिन आज 22 सत्रों में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में पुरस्कृत रचनाकारों के साथ लेखक सम्मिलन, भारतीय ऐतिहासिक कथा साहित्य की सार्वभौमिकता और साझा मानव अनुभव, क्या जनसंचार माध्यम साहित्यिक कृतियों के प्रचार प्रसार का एक मात्र साधन है?, वैश्विक साहित्यिक परिदृश्य में भारतीय साहित्य, ओमचेरी एन. एन. पिल्लै जन्म शतवार्षिकी संगोष्ठी, आधुनिक भारतीय साहित्य में तीर्थाटन आदि विषयों पर चर्चा और युवा साहिती तथा बहुभाषी कविता और कहानी पाठ के कई सत्र हुए। प्रसिद्ध अंग्रेज़ी लेखक उपमन्यु चटर्जी ने संवत्सर व्याख्यान प्रस्तुत किया जिसका विषय था “ध्यान देने योग्य कुछ बातें”।

लेखक सम्मिलन में कल पुरस्कृत हुए रचनाकारों ने अपनी सृजन की रचना प्रक्रिया को पाठकों के साथ साझा किया। इन सभी के अनुभव बिल्कुल अलग और दिल को छूने वाले थे। लेकिन सामान्यतः सामाजिक भेदभाव ही वह पहली सीढ़ी थी जिसने सभी को लेखक बनने के लिए प्रेरित किया।अपने हिंदी कविता संग्रह के लिए पुरस्कृत गगन गिल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कवि को न कविता लिखना आसान है न कवि बने रहना। कविता भले बरसों से लिख रहे हो , कवि बनने में जीवन भर लग जाता है। उन्होंने कविता को गूंगे कंठ की हरकत कहते हुए कहा की अपने चारों तरफ अन्याय और विमूढ़ कर देने वाली असहायता में कई बार कवि को उन शब्दों को ढूंढ कर भी लाना मुश्किल होता है जिससे वह उसका प्रतिकार कर सके।

“स्याही से दृश्य तक: साहित्यिक कृतियां जिन्होंने सिनेमा को रोचक बनाया” विषय पर हुई एक परिचर्चा प्रख्यात फिल्म लेखक अतुल तिवारी की अध्यक्षता में संपन्न हुई, जिसमें प्रख्यात फिल्म अभिनेत्री और निर्देशिका नंदिता दास, मुग्धा सिन्हा,मुर्तजा अली खान और रेंतला जयदेव ने भाग लिया। नंदिता दास ने अपनी फिल्म मंटो के आधार पर कहा कि कई बार कोई ऐतिहासिक पात्र वर्तमान में बहुत प्रासंगिक होते हैं और उसके सहारे हम वर्तमान में भी बदलाव की बात कर सकते हैं। महाश्वेता देवी की कहानी पर कई फिल्में बना चुकी नंदिता दास ने कहा कि जहां जहां का मेन स्ट्रीम सिनेमा मजबूत है वहां सार्थक या साहित्यिक फिल्में बनाना मुश्किल होता है । हिंदी और तेलुगु सिनेमा ऐसा ही है। आगे उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के साहित्य का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद न होने के कारण भी इस तरह की साहित्यिक फिल्में कम बन पाती हैं। वह लगातार अच्छी कहानी की तलाश में रहती हैं । अपनी अगली फिल्म के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वह 20 साल पहले लिखी अपनी पहली कहानी पर फिल्म बनाने जा रही हैं जो की एक जोड़े की कहानी है।दक्षिण भारत के सिनेमा के बारे में जयदेव ने कहा कि केरल यानी मलयालम की फिल्में साहित्य पर ही केंद्रित रहीं हैं। यह भी एक उल्लेखनीय तथ्य है कि जब-जब बहुत से निर्देशकों पर आर्थिक संकट आए हैं उन्होंने उसकी भरपाई साहित्यिक कृतियों पर फिल्में बनाकर की है। मुग्धा सिन्हा ने कहा कि उत्तर और मध्य भारत की फिल्मों के लिए तकनीकी सुविधा केवल मुंबई में केंद्रित होने के कारण भी क्षेत्रीय सिनेमा का निर्माण महंगा हो जाता है। उन्होंने भी अनुवाद की कमी की ओर इशारा किया । मुर्तजा अली खान ने एडॉप्शन के कुछ अच्छे और खराब उदाहरण देते हुए कहा कि एडॉप्शन एक अच्छी प्रक्रिया है लेकिन कई मामलों में निर्देशक की एक पक्षीय दृष्टि के कारण वह असफल रह जाती है। अतुल तिवारी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि सिनेमा बहुत सी कलाओं का समूह है और उसे साहित्य की तथा साहित्य को सिनेमा की हमेशा जरूरत रहेगी। अच्छी फिल्म का निर्माण भी एक अच्छे उपन्यास लिखने की तरह है।