Skip to main content

बीकानेर की लोकसभा सीट पर कांग्रेस के वोट हैं, बशर्ते चुनाव विधानसभा की तर्ज पर लड़े

आरएनई,बीकानेर।   

बीकानेर लोकसभा सीट में 8 विधानसभा सीट शामिल है, 7 सीट बीकानेर जिले की और 1 सीट अनूपगढ़ जिले की। हाल ही में हुवै विधानसभा चुनाव के परिणामों को आधार बनाये तो भाजपा काफी आगे है। उसने 8 में से 6 विधानसभा सीट जीती है और कांग्रेस केवल दो ही सीट जीत पाई है। मगर विधानसभा चुनाव को आधार बनायें तो राजनीतिक कहानी कुछ अलग ही सामने आती है।बीकानेर जिले की श्रीकोलायत सीट भाजपा ने 30 हजार से अधिक वोटों से जीती थी। मगर यहां रालोपा के रेवंतराम भी खड़े थे जिनको 20 हजार से अधिक मत मिले। यदि कांग्रेस के भंवर सिंह व रेवंतराम के वोटों को जोड़े तो भाजपा से ज्यादा पीछे नहीं है। वहीं श्रीडूंगरगढ़ की बात करें तो यहां माकपा के गिरधारी महिया व कांग्रेस के मंगलाराम गोदारा अलग अलग लड़े। दोनों इंडिया गठबंधन के दल हैं और दोनों के वोटों को जोड़े तो भाजपा के ताराचंद सारस्वत से काफी ज्यादा है। ये राजनीतिक तथ्य है।ठीक इसी तरह लूणकरणसर में कांग्रेस के राजेन्द्र मुंड चुनाव लड़े और कांग्रेस के बागी वीरेंद्र बेनीवाल भी चुनाव लड़े, जिनको 30 हजार से अधिक वोट मिले। इन दोनों के वोट जोड़ें तो वे भाजपा से बहुत ज्यादा है।नोखा विधानसभा का चुनाव कांग्रेस की सुशीला रामेश्वर डूडी ने लड़ा और वे विजयी रही। मगर यहां भी निर्दलीय लड़े कन्हैयालाल झंवर व एक एससी उम्मीदवार ने काफी वोट लिए। उन सबको जोड़ा जाये तो भाजपा काफी पीछे रह जाती है। खाजूवाला, बीकानेर पश्चिम व पूर्व में भाजपा आगे है। जबकि अनूपगढ़ चुनाव कांग्रेस ने जीता हुआ है।
इस लिहाज से देखा जाये तो कांग्रेस के पास वोट है, मगर वो लोकसभा चुनाव में ले तब बात हो। हर बार लोकसभा चुनाव में वो भाजपा से पिछड़ जाती है। पिछली बार भी यही हुआ था। उसकी वजह ये है कि विधानसभा चुनाव लड़ने वाले नेता लोकसभा चुनाव को उस तरह नहीं लड़ते जैसे अपना चुनाव लड़ते हैं।इसके अलावा कुछ फर्क मुद्धों का भी पड़ जाता है। लोकसभा चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाता है और उसका अलग क्रेज है। वोटर स्थानीय संबंधों को तब तव्वजो नहीं देता। वो राष्ट्रीय मुद्धों पर ही वोट करता है। दूसरे अर्जुनराम मेघवाल जैसा सहज, सौम्य व शालीन चेहरा भी चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस के पास नहीं है। कांग्रेस की बड़ी कमी ये है कि विधानसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार लोकसभा चुनाव को अपना नहीं प्रत्याशी का चुनाव समझ लड़ते हैं और यहीं अंतर आ जाता है। इस बार भी स्थितियां पिछले चार चुनाव जैसी ही है, अभी तक तो उनमें कोई फर्क नजर नहीं आ रहा।

— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘