Skip to main content

ओपीएस का हक़ छोड़ने को तैयार नहीं कर्मचारी, राजस्थानी की बात ही नहीं, नाराज हैं लोग

RNE, State Bureau .   

10 जुलाई को भजनलाल सरकार का पहला बजट वित्त मंत्री दिया कुमारी ने विधानसभा में रखा। बजट में नियुक्तियों का पिटारा खोला गया। कई नई योजनाओं की घोषणा हुई। स्वास्थ्य, सड़क, शिक्षा, किसान, युवा के लिए भी खूब प्रावधान किए गये। सरकारी पक्ष ने बजट की सराहना की तो विपक्ष ने बजट की जमकर आलोचना की। ये तो हर बजट की रीत है, एक पक्ष अच्छा और दूसरा पक्ष उसे बुरा कहता ही है। इनको तो अपने दल की नीतियों के अनुसार ही बोलना होता है।

बजट तैयार करने से पहले सरकार ने लोगों से ऑनलाइन सुझाव भी मांगे। लाखों लोगों ने सुझाव दिए भी। उस समय के सुझावों की पड़ताल से ये बात सामने आई कि सर्वाधिक सुझाव लोगों ने ओल्ड पेंशन स्कीम ‘ ओपीएस ‘ पर दिये। जाहिर है, पिछली कांग्रेस सरकार ने कर्मचारियों को ये सुविधा दी थी, जिसको लेकर इस वर्ग में असमंजस था। सरकार बदल गई थी इसी कारण कर्मचारी वर्ग इसको लेकर गंभीर था। सीएम को जो सुखाव दिए गए उनमें एक सुझाव राजस्थानी भाषा को दूसरी राजभाषा बनाने का भी सुझाव था। इन दोनों सुझावों को लेकर सरकार का क्या रुख रहता है, ये सब जानना चाहते थे। उत्सुकता थी।

आखिर 10 जुलाई को बजट आ गया। मगर राज्य के बजट में इन दोनों ही बातों का जिक्र तक नहीं था। पहले बात ओपीएस की। कर्मचारी, शिक्षक संगठन भजनलाल सरकार बनने के समय से इस राग को एकमत होकर गा रहे थे। राज्य कर्मचारियों ने स्पष्ट चेतावनी भी दे रखी थी कि वे ओपीएस का नुकसान बर्दाश्त नहीं करेंगे। चाहे कोई सा भी कर्मचारी या शिक्षक संगठन हो, एक राय होकर ये चेतावनी दे रहा था और अब विरोध के स्वर बुलंद कर रहा है।

विधानसभा के पहले सत्र में 8 विधायकों ने भी ओपीएस पर सवाल पूछ रखे थे, मगर सरकार की तरफ से उनको जवाब ही नहीं दिया गया था। इसी कारण कर्मचारी बजट से आस लगाये हुए थे। बजट से इस मामले में निराशा हाथ लगने के बाद अब ये वर्ग अभी आंदोलन व संघर्ष के बयान देना शुरु हो गया है। संगठित होकर आंदोलन करने की भी रूपरेखा बननी शुरू हो गई है। इस ओपीएस से सेवारत व सेवानिवृत्त कर्मचारियों के परिवार जुड़े हैं, जिनकी गणना लाखों में है। इनकी नाराजगी सरकार कैसे सहन करेगी, ये विचारणीय प्रश्न है। हो सकता है आने वाले समय मे सरकार को कर्मचारियों के बड़े आंदोलन का सामना करना पड़े। जिसकी धमक अभी से सुनाई देने लग गई है।

राजस्थानी को दूसरी राजभाषा बनाने की बात तो सरकार या विपक्ष, कोई भी नहीं कर रहा। वोट इस मायड़ भाषा में मांगे। इस भाषा के लिए वादे किए मगर अब कुछ भी शायद न तो सरकार को याद है, न विपक्ष को। बजट पर जब चर्चा होगी तब सामने आ जायेगा कि कौन भाषा के लिए बोलता है और किसको अपनी मातृभाषा से लगाव है।
सरकार से भी जनता का सवाल है कि जब सुझाव काम में ही नहीं लेने हैं तो फिर जनता से बजट के लिए सुझाव मांगे ही क्यों जाते हैं। अब जनता व भाषा प्रेमी आगे क्या कदम उठाते हैं, ये देखने की बात है।


– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘