पश्चिम विधायक रेलवे अधिकारियों से मिले, बाकी नेता अब मौन क्यों ??
एड. मनोज आचार्य
RNE, Bikaner.
शहर को दो भागों में बांटने वाले रेलवे फाटकों की समस्या एक बार फिर उठी है। कल बीकानेर पश्चिम के विधायक जेठानन्द व्यास ने डीआरएम से मुलाकात की और इस समस्या के समाधान के लिए अब तक रहे जन प्रतिनिधियों की तरह ज्ञापन दिया। ज्ञापन में वही जनता की पीड़ा, समस्या की विकरालता आदि की बातें थी।
हर लोकसभा व विधानसभा चुनाव में रेलवे फाटक एक मुद्दा होता है और हर निर्वाचित होने वाला जीत के बाद इस समस्या के निदान के लिए ज्ञापन भी देता है। कड़वा सच ये है कि समस्या अब भी जस की तस है, इंच भर भी सुधार नहीं हुआ।
कोटगेट व स्टेशन रोड के रेलवे फाटकों से बीकानेर की जनता त्रस्त है। घँटों बरबाद होते हैं। पेट्रोल व डीजल का अपव्यय होता है। जरूरी काम वाले अटकते हैं। मरीज कई बार बेहाल होते हैं। बुजुर्ग प्रदूषण से हांफते हैं। बच्चों का बुरा हाल होता है। कईयों को रास्ता बदल के जाना पड़ता है। सरकारी कर्मचारी को दफ्तर पहुंचने में देरी होती है। शहर के भीतर के आदमी को तो हर काम के लिए इस फाटक को पार करके जाना पड़ता है।
क्योंकि कलेक्टर, एसपी, कमिश्नर, निगम, न्यास, बिजली, पानी सहित सभी विभागों के दफ्तर बाहरी इलाके में है। जिनसे रोज काम पड़ता है। इस कारण रेलवे फाटक की ये समस्या हर बीकानेरवासी से जुड़ी है। इसके बाद भी न तो केंद्र सरकार और न राज्य सरकार, इसे हल करने को ठोस प्रयास नहीं करते। राजनेता रस्म अदायगी करते हैं, ज्ञापन देते हैं। अखबार की सुर्खियों से चिंतित दिखते हैं और फिर समस्या को भूल जाते हैं। एक बाए केंद्रीय रेल मंत्री सी के जाफर शरीफ व उस समय के सीएम स्व भैरोंसिंह शेखावत भी इस समस्या को देखने आये, मगर हल तो नहीं हो सका।
वर्तमान में भी केंद्र सरकार में यहां के चौथी बार के सांसद कानून मंत्री है। पहले भी थे। वे भी इन फाटकों की समस्या का समाधान नहीं करवा सके है। राज्य की सरकार में डॉ बी डी कल्ला ताकतवर मंत्री रहे, मगर हल नहीं हुआ। इन नेताओं से ये सवाल करते हैं तो वे ठोस राजनीतिक कारण बता देते हैं। सही भी होंगे शायद वो, मगर जनता को तो परेशानी से मुक्ति चाहिए। वो उसे मिली नहीं। मिला तो केवल आश्वासन, राजनीतिक मजबूरियों की बातें या रस्म अदायगी। एक बार फिर हो रहे प्रयास भी उसे रस्म अदायगी लगते हैं, लगना गलत भी नहीं। अब तक तो यही हुआ है। जनता का दुखी मन यही कहता है–
हो गई पीड़ पर्वत सी
अब पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से अब
कोई गंगा निकलनी चाहिए