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‘एकांतनामा’ हमारी अदृश्य भीतरी उठापटक का जीवंत दस्तावेज़ : प्रोफ़ेसर माधव हाड़ा 

  • डायरी विधा का मोती है एकांतनामा – इरशाद खान सिकन्दर

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भारत ,मंडपम में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में मंगलवार को युवा कवि और गद्यकार ओम नागर की डायरी एकांतनामा का लोकार्पण हुआ। लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि विख्यात शाइर और नाटककार इरशाद खान सिकंदर थे। विशिष्ट अतिथि आलोचक और बनास जन के सम्पादक पल्लव थे और अध्यक्षता विख्यात साहित्य अध्येता प्रो माधव हाड़ा ने की। 

अपने वक्तव्य में इरशाद खान सिकन्दर ने कहा कि डायरी जैसी विधा में ओम नागर ने अनेक कृतियों का सृजन किया है जो उनकी प्रयोगशील मेधा का परिचायक है। उन्होंने एकांतनामा को डायरी विधा का मोती बताते हुए कहा कि कोरोना के भयानक दिनों को साहित्य में नागर ने जिस तरह से दर्ज़ कर दिया है उससे यह पुस्तक संग्रहणीय बन पड़ी है। सिकन्दर ने कहा कि नागर की भाषा सरस और प्रवाहमयी है जिसमें गंभीर विमर्श भी पाठक को कठिन नहीं लगता।

विशिष्ट अतिथि पल्लव ने कहा कि भारत में डायरी लिखने का चलन गांधी जी के आंदोलन के साथ शुरू हुआ। आजादी के आंदोलन के फैलते जाने के साथ गांधी जी के अनुयायी और सत्याग्रही डायरी लिखने को जरूरी काम मानते थे। लेकिन इससे भी बहुत पीछे जाकर देखें तो राजाओं के दौर में रोजनामचे लिखने की परम्परा हमारे देश में रही है। उन्होंने कहा कि ‘आत्म’ का प्रवेश डायरी को रचना का रूप देता है जो रोज़नामचा नहीं होती। ओम नागर की डायरी को पल्लव ने गंभीर रचना का उदाहरण बताते हुए कहा कि उनके डायरी लेखन ने नयी शताब्दी में फिर से कथेतर के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में विद्वान अध्येता प्रो माधव हाड़ा ने कहा कि कवि ओम नागर की डायरी ‘एकांतनामा’ हमारी अदृश्य भीतरी उठापटक का जीवंत दस्तावेज़ है। इस डायरी को पढते हुए लगता है जैसे एकांत की भी एक भाषा होती है- यह आपसे बोलता-बतियाता है। कोरोना महामारी में बाहर की उठापटक के अलावा भय, आशंका, चिंता, असुरक्षा, अयाचित एकांत, हताशा, असहायता आदि कितना-कुछ था जो हमारे भीतर बहकर निकल गया, यह सब इस डायरी में दर्ज़ है। प्रो हाड़ा ने कहा कि यह डायरी हमें फिर से हमारी सदी के सबसे भयावह समय के एकांत में खींचकर कुछ सोचने-समझने के लिए प्रेरित करेगी।

इससे पहले सूर्य प्रकाशन मंदिर के स्टाल पर प्रकाशक प्रशांत बिस्सा ने सभी का स्वागत करते हुए अपने प्रकाशन की साठ वर्षों की यात्रा का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी और भारतीय भाषाओं के अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाकारों की कृतियां सूर्य प्रकाशन मंदिर से  आई हैं।