राहुल कस्वां के कांग्रेस में आने से बदलेगा जाटलेंड का राजनीतिक समीकरण, भाजपा के सामने मुश्किल
आरएनई,स्टेट ब्यूरो।
चूरू के सांसद राहुल कस्वां ने कल भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। भाजपा के साथ उन्होंने सांसद पद से भी त्यागपत्र दे दिया। भाजपा ने उनका चूरू से टिकट काट दिया था। राहुल ने टिकट कटते ही बगावती सुर अख्तियार कर लिए थे। राहुल के कांग्रेस में जाने का अंदेशा भाजपा को था इसलिए उसने उससे एक दिन पहले ही कई जाट नेताओं को भाजपा में लाई। हालांकि ये कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये जाट नेता जाटलेंड में भाजपा को कितना फायदा देंगे, वो सवालों के घेरे में है।
मगर राहुल कस्वां का भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाना इनसे थोड़ा अलग है। चूरू की राजनीति पर कस्वां परिवार का 38 साल से वर्चस्व है। तीन पीढियां सांसद रही है। राहुल भी लगातार दो चुनाव जीत चुके हैं और जाट समुदाय से इस परिवार का जीवंत जुड़ाव है। राहुल का टिकट जब भाजपा से कटा तो चूरू के अलावा नागौर, श्रीगंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर के कई जाट नेताओं ने नाराजगी जताई। उसी कारण भाजपा की चिंता बढ़ी और उसने कई जाट नेताओं को पार्टी की सदस्यता दिलवाई।
राहुल का टिकट कटने पर रालोपा के हनुमान बेनीवाल ने भी बयान दिया और उनको रालोपा से लड़ने का प्रस्ताव दिया। जाटलेंड की 5 सीटों पर बेनीवाल का अपना वोट बैंक भी है। उनका भाजपा से समझौता नहीं हुआ तो जाहिर है वे भी इस बार भाजपा को लाभ देने का काम तो करेंगे नहीं। इन पांच लोकसभा सीटों को जाट बाहुल्य माना जाता है। बीकानेर संसदीय सीट को छोड़ दें तो शेष चार सीटों की विधानसभाओं का गणित भी गड़बड़ाया हुआ है।
चूरू, श्रीगंगानगर व नागौर में कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में अच्छी सफलता मिली है तो वहीं बाड़मेर में भी भाजपा का वर्चस्व नहीं रहा है। बीकानेर में जरूर 8 में से 6 विधानसभा सीट भाजपा ने जीती हुई है। यहां कांग्रेस पिछले तीन चुनाव से केंद्रीय कानून मंत्री के विजय रथ को थामने में ही असफल रही है। चुनाव दर चुनाव उनकी जीत का ग्राफ बढ़ा है। उनके मुकाबले का उम्मीदवार भी लाना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर है। क्योंकि अब मेघवाल का कद बड़ा है और देश की दलित राजनीति में वे बड़ा चेहरा भी है।
मेघवाल की मजबूती और बड़े कद का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक उनके खिलाफ उम्मीदवार की कांग्रेस की खोज ही पूरी नहीं हो पाई। दूसरे भले ही विधानसभा चुनाव के परिणाम पिछले तीन चुनाव में कुछ भी रहे हों, अर्जुनराम मेघवाल के चुनाव के समय वे उलट जाते हैं। इस बार तो विधानसभा चुनाव के परिणाम भी उनके अनुकूल है। कुल मिलाकर राहुल कस्वां का पाला बदलना जाटलेंड पर असर तो डालेगा, इसकी संभावना तो राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘