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सौभाग्यसिंह शेखावत एक सजग मौन साधक थे : प्रोफेसर के.एल श्रीवास्तव

RNE, BIKANER.

राजस्थानी साहित्य में एक तरफ जहां सत्ता में बैठे सर्वोच्च लोग कवियों के पांव पूजते थे यहीं दुर्भाग्य यह है कि देश की आजादी के छियत्तर वर्ष बाद भी इस भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली। राजस्थान वीरों की भूमि है इसके प्रमाण देने के साथ ही राजस्थानी भाषा-साहित्य आने वाली पीढी को नई जमीन प्रदान करती है ।

सौभाग्यसिंह शेखावत जैसे विद्वान इसी राजस्थानी भाषा-साहित्य की हेमाणी के सच्चे साधक थे। यह विचार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में साहित्य अकादेमी एवं जेएनवीयू के राजस्थानी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में होटल चन्द्रा इम्पीरियल में आयोजित ‘ सौभाग्यसिंह शेखावत : जीवण अर सिरजण ‘ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद में व्यक्त किये।

संगोष्ठी संयोजक एवं राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने बताया कि इस अवसर पर सारस्वत अतिथि जेएनवीयू के कुलपति प्रोफेसर (डाॅ.) कन्हैयालाल श्रीवास्तव ने कहा कि राजस्थान भाषा एक समृद्ध एवं स्वतंत्र भाषा जिसे संवैधानिक मान्यता मिलनी चाहिए । उन्होंने इस संबंध में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अगर समय रहते राजस्थानी को संवैधानिक नहीं मिली तो राजस्थानी संस्कृति खत्म हो जायेगी। प्रोफेसर श्रीवास्तव ने सौभाग्यसिंह शेखावत को राजस्थानी का एक सजग मौन साधक बताया । प्रोफेसर (डाॅ.) कल्याणसिंह शेखावत ने अपने मुख्य आतिथ्य उदबोधन में कहा कि सौभाग्यसिंह शेखावत की ज्ञानदृष्टि अद्भुत थी जिसकी वजह से उन्होंने राजस्थानी भाषा-साहित्य एवं संस्कृति के इतिहास विषयक महत्वपूर्ण सृजन किया। उन्होंने कहा कि उनका सृजन राजस्थानी साहित्य की अनमोल धरोहर है। उदघाटन सत्र का संचालन डाॅ.इन्द्रदान चारण ने किया।

पुस्तक विमोचन : इस अवसर पर साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित राजस्थानी विशेषांक ‘ समकालीन भारतीय साहित्य ‘ एवं डाॅ.गजेसिंह गजेसिंह राजपुरोहित द्वारा संपादित पुस्तक ‘ पारस अरोड़ा री साहित्य साधना ‘ का लोकार्पण किया गया। साहित्यिक सत्र : परिसंवाद में आयोजित दो साहित्यिक सत्रों के अंतर्गत पृथ्वीराज रतनू ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन मांय वांनै राजस्थानी भाषा-साहित्य का कर्मठ साधक बताया तो डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में सौभाग्यसिंह शेखावत को अेक लोक चितेरा गद्यकार बताते हुए उनके साहित्य की विवेचना की। इस अवसर पर सुश्री नीलू शेखावत ने सौभाग्यसिंह शेखावत का जन्म एवं जीवन संघर्ष, डाॅ. संजय कुमार शर्मा – राजस्थानी विद्यापीठ में सौभाग्यसिंह शेखावत का शोधकार्य, डाॅ.मदनसिंह राठौड़- सौभाग्यसिंह शेखावत का राजस्थानी साहित्य एवं इतिहास में योगदान एवं डाॅ. सद्दीक मोहम्मद राजस्थानी शोध संस्थान संस्थान चौपासनी में सौभाग्यसिंह शेखावत का सृजन विषय पर महत्वपूर्ण आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किये। साहित्यिक सत्रों का संचालन डाॅ. जीवराजसिंह चारण एवं तरनिजा मोहन राठौड ने किया।

समापन सत्र : राजस्थानी परिसंवाद के समापन सत्र में प्रतिष्ठित राजस्थानी विद्वान एवं इतिहासविद प्रोफेसर जहूर खां मेहर ने सौभाग्यसिंह शेखावत के साहित्यिक व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा उन्होंने जीवनभर ईमानदारी से राजस्थानी भाषा-साहित्य एवं संस्कृति विषयक महत्वपूर्ण शोधकार्य संपादित किये। मुख्य अतिथि के रूप में ख्यातनाम कवि-आलोचक डाॅ.अर्जुनदेव चारण ने कहा कि लोक का ज्ञान हमेशा शास्त्रीय ज्ञान से बड़ा होता है ।

सौभाग्यसिंह शेखावत ने लोक के मानस को समझकर सृजन किया है इसलिए लोक में उनका सृजन सदैव प्रासंगिक रहेगा। संगोष्ठी संयोजक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने सभी मेहमानों एवं उपस्थित लोगो का आभार प्रकट किया। सत्र का संचालन श्रीमती संतोष चौधरी ने किया। संगोष्ठी के प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की मूर्ति पर पुष्पमाला अर्पित कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। तत्पश्चात पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के देवलोक गमन होने पर दो मिनट का मौन रखकर उनकी पावन-दिव्य आत्मा को श्रद्धापूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

समारोह में प्रतिष्ठित रचनाकार प्रोफेसर सत्यनारायण, प्रोफेसर कौशलनाथ उपाध्याय, कल्याण सिंह राठौड़, डाॅ.चांद कौर जोशी, बसंती पंवार, माधव राठौड़, निर्मला राठौड, नीतू परिहार, पूजा राजपुरोहित, रेणू वर्मा, दमयंति कच्छवाह, संतोष चौधरी, डाॅ. महेन्द्रसिंह तंवर, मोहनसिंह रतनू, राजेन्द्र बारहठ, भंवरलाल सुथार, तरनिजा मोहन राठौड, डाॅ. कालूराम परिहार, रामरतन फिड़ोदा, खेमकरण लालस, डाॅ.कप्तान बोरावड़, डाॅ. सवाईसिंह चारण, डाॅ. अमित गहलोत, डाॅ. जितेन्द्र सिंह साठिका, पृथ्वीसिंह राठौड, रविन्द्र कुमार चौधरी, श्रवणराम भादू, शिवानी जोधा, नीतू राजपुरोहित, सुरभी खींची, माधोसिंह, कंवरसिंह राव, विष्णुशंकर, मगराज, शांतिलाल, अभि पंडित सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, विश्वविद्यालय शिक्षक, शोध-छात्र एवं मातृभाषा प्रेमी मौजूद रहे।