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सोनिया को राजस्थान ला गहलोत ने कई तीर एक साथ साधे, पायलट भी उत्साह से लबरेज

आरएनई,बीकानेर।

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का अचानक से राजस्थान को राज्यसभा के लिए चुनना बहुत सहज नहीं है। पर्दे के पीछे की अलग राजनीतिक कहानी है। सोनिया को राज्यसभा में भेजने के लिए पहले हिमाचल प्रदेश को चुना गया था। बात लगभग तय थी मगर एन वक़्त पर राज्य बदल गया। इस बदलाव में राज्य के नेताओं की भी बड़ी भूमिका मानी जा रही है। राजस्थान कांग्रेस तीन साल से अशोक गहलोत व सचिन पायलट में बंटी हुई है, उसमें दोनों ही नेता एक दूसरे के साथ शह और मात का खेल, खेल रहे हैं।
पायलट पहले सीडब्ल्यूसी में गये, पार्टी के महासचिव बने और छत्तीसगढ़ का प्रभार मिला। गहलोत विधानसभा चुनाव हार गये तो थोड़ा पिछड़ गये दिल्ली में। मगर गहलोत आसानी से राजनीति में हार मानते नहीं। वे अवसर की तलाश में लग गये। अवसर मिला राज्यसभा चुनाव की घोषणा से।
सोनिया गांधी के हिमाचल से लड़ने की बात चली और राजस्थान में पार्टी के कोषाध्यक्ष अजय माकन को प्रत्याशी बनाने की चर्चा हुई। गहलोत को ये भनक लगते ही सक्रिय हो गये। उन्होंने तुरत फुरत में राज्य से सोनिया गांधी को उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव आलाकमान को भिजवा दिया। पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा उनके ही गुट के समझे जाते हैं। अब प्रस्ताव सोनिया का हो तो किसी नेता की हिम्मत नहीं कि वो विरोध कर सके। पायलट के मुंह पर राजनीतिक ताला लगाने का ये अमोघ अस्त्र था। पायलट को भी सोनिया के पक्ष में आना पड़ा। आलाकमान भी तैयार हो गया, क्योंकि ये राज्य सबसे सेफ था।
गहलोत के मन की दूसरी बात भी इससे पूरी हो गई। माकन का पत्ता भी बिना कुछ किये कट गया। माकन पहले राजस्थान के प्रभारी थे तब उनकी और गहलोत की बिगड़ गई। गहलोत गुट ने खुलकर माकन पर आरोप लगाये। उन पर नेतृत्त्व परिवर्तन में पार्टी बन जाने तक की बात सार्वजनिक रूप से कही गई। तब नाराज होकर माकन ने प्रभारी का पद भी छोड़ दिया। तब से दोनों के मध्य खिंचाव है। सोनिया के आने से एक तरफ जहां पायलट के मुंह पर ताला लगाया गया वहीं माकन को भी दूर रखने में सफलता मिली। एक तीर से ये दो शिकार तो साफ साफ दिख रहे हैं। तीसरा ध्येय भी अब साफ हो गया। गहलोत ये निर्णय करा आलाकमान के थोड़ा निकट पहुंच गये और आगे के लिए अपने को सुरक्षित कर लिया। पायलट को इस बात पर संतोष है कि अब राज्य की राजनीति में सोनिया गांधी की सीधी भागीदारी रहेगी, तब वे असलियत उन तक पहुंचा सकेंगे। वैसे भी राजनीति में एक निर्णय का एक परिणाम नहीं होता, कई होते हैं।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘