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क्यों सिमट गये हैं भाजपा व कांग्रेस के क्षत्रप गहलोत, वसुंधरा, सचिन, अपनी सीटों पर ही लगा रहे पूरा जोर

RNE, BIKANER .

लोकसभा चुनाव 2024 की तस्वीर पूरी तरह बदली बदली सी नजर आ रही है। बदलाव नेताओं में देखने को मिल रहा है। कुछ महीनों पहले विधानसभा चुनाव के वक़्त राज्य के दोनों दलों के जो क्षत्रप अपनी सीटों के साथ अन्य उम्मीदवारों के लिए भी घूम रहे थे वे अब अपनी या अपनों की ही सीटों तक सिमटे हुए दिख रहे हैं। जिसे देखकर लगता है कि कहीं कुछ न कुछ बदलाव तो हुआ है। ये बदलाव आम चुनाव पर असर नहीं डालेगा, ये कहना तो गलत होगा। भाजपा में वसुंधरा राजे, किरोड़ीलाल मीणा, राजेन्द्र राठौड़ तो कांग्रेस में अशोक गहलोत, सचिन पायलट, कुछ ही सीटों पर सिमटे दिख रहे हैं। ये राजनीतिक तस्वीर सब को सोचने के लिए बाध्य तो करती ही है।


विधानसभा चुनाव के बाद दोनों ही पार्टियों का परिदृश्य बदला है। भाजपा ने इस बार राजे की जगह पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया। राजेन्द्र राठौड़ व सतीश पूनिया तो चुनाव हार गये, रेस से भी बाहर हो गये। मगर राजे, किरोड़ीलाल मीणा तो रेस में थे। उनको मौका नहीं मिला। उसके बाद से ही ये दोनों नेता थोड़े बैकफुट पर आ गये। राजे ने तो पूरी तरह से खुद को सिमटा लिया, किरोड़ीलाल भी मुखर नहीं रहे। यही स्थिति कांग्रेस में हुई। हार के बाद अशोक गहलोत का भी पूर्ण वर्चस्व थोड़ा कम हो गया और सचिन पायलट का वर्चस्व पहले बढ़ गया। वे सीडब्ल्यूसी के सदस्य, कांग्रेस महासचिव व छत्तीसगढ़ के प्रभारी बन गये। अब निर्णयों में दखल विधानसभा चुनाव के समय से अधिक हो गया।


भाजपा ने इस बार फिर राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह को झालावाड़ से उम्मीदवार बनाया है और वे अब वहीं सक्रिय है। उनको राज्य की शेष 24 सीटों पर प्रचार के लिए अब तक तो देखा ही नहीं गया जबकि विधानसभा चुनाव में उन्होंने पूरे राज्य के दौरे किये थे। किरोड़ीलाल मीणा विधानसभा में फ्रंटफुट पर थे। मगर करौली से टिकट उनकी पसंद को नहीं मिला, उनकी भी प्रचार में कम ही उपस्थिति दिख रही है। राजेन्द्र राठौड़ चूरू तक सिमट गये हैं, क्योंकि राहुल कस्वां ने ऐसे ही हालात बना दिये हैं। सतीश पूनिया हरियाणा चले गये।


कांग्रेस ने जालौर से गहलोत के बेटे वैभव को टिकट दे दिया तो उनका पूरा ध्यान उसी सीट पर केंद्रित है। इसके अलावा उनके साथ रहे जो नेता लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, वहां वे जरूर जा रहे। टिकट वितरण में पायलट फेक्टर हावी रहा है तो वे भी उन्हीं सीटों पर ज्यादा चक्कर लगा रहे हैं जहां उनके साथ के या सहयोग के उम्मीदवार है। पायलट हालांकि सभी क्षेत्रों को छूने की कोशिश कर रहे हैं मगर फोकस तो तय है। लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों पार्टियों में क्षत्रपों की ये स्थिति इस बात का संकेत तो कर ही रही है कि इन चुनावों के बाद राज्य में दोनों दलों के परिदृश्य में बदलाव तो निश्चित होगा।

– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘